खबर लहरिया Blog खुले में शौच जाना मजबूरी है आदत नहीं- ग्रामीण

खुले में शौच जाना मजबूरी है आदत नहीं- ग्रामीण

केंद्र सरकार के अलावा देश के अलग-अलग राज्यों की सरकारें स्वच्छता को लेकर अपने-अपने स्तर पर कोशिशें कर रही हैंl लेकिन इस सबके बावजूद खुले में शौच की समस्या से राहत मिलती नहीं नजर आ रही हैl आज हम बात कर रहे हैं चित्रकूट जिले के ग्रामपंचायत भिटारी का मजरा तिलहिया कीl जहाँ लगभग 60 परिवारों को शौचालय का लाभ मिला लेकिन दूसरी क़िस्त के बिना अधूरा पड़ा है|

जब घर में न हो इज्जत घर

कई गांवों की स्थिति आज भी ऐसी ही है जहाँ नई दुल्हन से लेकर गाँव की बूढ़ी काकी तक सुबह चार बजे खेतों में शौच के लिए जाती हैं l ऐसी स्थिति बनीं हुई है की सूरज निकलने से पहले अगर दिशा-मैदान से हल्की नहीं हुईं, तो दिन भर पेट दबाकर ही बैठना होगा। क्योंकि उसके बाद तो खेतों में काम चलता हैl घर में शौचालय न होने के कारण केवल आदमियों को ही हक है कि वो दिन में जब चाहें तब खेत में जाकर पेट हल्का कर सकते हैं। लेकिन सुबह चार बजे के बाद और सूरज ढलने के बीच अगर कोई महिला डिब्बा लेकर बाहर निकल गई तो लोग ऐसे देखते हैं मानों कोई गुनाह कर दिया हो |

भ्रष्टाचार की गंदगी में डूबा आधे-अधूरे शौचालय का निर्माण

सुग्गा मौजूदा स्थिति में शौचालय को दिखाते हुए बताते हैं कि जब पैसा ही नहीं है तो बनेगा कैसे? शौचालय में सिर्फ एक टीन का दरवाजा है जिसके अन्दर शौचालय की शीट की जगह पर घास उगी हुई है मानों खेत की स्थिति है l ऐसे हालात इसलिए हैं कि सिर्फ एक क़िस्त 6 हजार ही मिला हैl  इसमें कैसे पूरा बन जायेगाl प्रधान से कहा भी तो कुछ सुना ही नहीं गयाl शौचालय जाएँ तो जाएँ कहाँ? आजकल खेतो में धान की फसल खड़ी है जिसके खेत में जाओ गालियाँ देता हैl हम यही चाहते हैं कि अगर सरकार ने शौचालय की सुविधा दी है तो इस शौचालय को पूर्ण करा दिया जाएl जिससे हम लोग बाहर ना जाये |

अधूरा शौचालय उड़ा रहा खिल्ली

कई गांवों में अधूरा पड़ा शौचालय स्वच्छ भारत के सपने की खिल्ली उड़ा रहा है। किसी शौचालय में सीट नहीं है तो किसी का छत खुला तो कइयों का टैंक बनना बाकी है। जिस कारण लोग आज भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। नतीजतन गांव के रास्ते और खेतों में गंदगी का अंबार देखने को मिलता है। हालात इतने बुरे हैं कि ऐसे रास्तों से गुजरने के दौरान लोगों को मुंह पर रुमाल बांधना पड़ता है।

   संगीता बताती हैं प्रधान सिर्फ 500 ईट, मसाला और दरवाजा दिया है उतने में शौचालय कैसे बनेगा? जंगली इलाका है जादियों में कहाँ जाये सांप बिच्छू जानवर भी हैं, खेतो में चारा लगा है कहाँ जाएँl प्रधान बोल रहे थे जब मटेरियल देंगे तो बनवानाl अब हम क्या ही कर सकते हैं अपने पास तो इतना है नहीं की बनवा सकेंl रेखा बताती हैं की गाँव में सबका शौचालय अधूरा पड़ा हैl जाँच करने गई थी की शायद आया हो पर पैसा ही नहीं आया हैl बंधी मजदूरी करते हैं उसमें घर का खर्चा ही नहीं चल रहा की खुद बनवा लेंl
अब इन ग्रामीणों के सामने बहुत बड़ी चुनौती है खुले में शौच जाने कीl यूं तो जिले में स्वच्छता और शौचालय निर्माण को लेकर गांव-गांव में जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है लेकिन यहाँ की सुधि किसी ने नहीं लीl अब देखना यह है की इन ग्रामीणों को शौचालय का लाभ मिलेगा या खुले में जाना ही इनकी मज़बूरी होगीl

– ललिता