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क्या सच में मज़दूर भाइयों के लिए मददगार है श्रम विभाग? - KL Sandbox
खबर लहरिया ताजा खबरें क्या सच में मज़दूर भाइयों के लिए मददगार है श्रम विभाग?

क्या सच में मज़दूर भाइयों के लिए मददगार है श्रम विभाग?

क्या सच में मज़दूर भाइयों का मददगार विभाग है श्रम विभाग? देखिये राजनीति, रस, राय में नमस्कार दोस्तो, मैं हूँ मीरा देवी, खबर लहरिया की ब्यूरो चीफ। मेरे शो राजनीति, रस, राय में आपका बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों मज़दूर भाइयों का मददगार विभाग है श्रम विभाग। जब कोरोना महामारी के समय रोजगार की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है तो आइए बात करते हैं कि क्या सही में मदद मिल पा रही हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार अधिनियम के अधीन भवन और अन्य कार्यों की श्रेणी में 40 तरह के ऐसे मजदूरों का पंजीकरण करने का नियम हैं जो 18 से 60 साल की उम्र वाले हैं। यहां पर पंजीकरण हो जाने पर सरकार की तरफ से लेवर कार्ड मिल जाता है और साथ ही कई तरह के सरकारी लाभ मिलते हैं, सरकारी योजनाओं में प्राथमिकता दी जाती है।
Is the Labor Department really helpful to the working brothers?
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि न मजदूरों को इसकी जानकारी है और जिन्होंने इसके बारे में पता भी लगाया और पंजीकरण कराने गया तो यहां पर पंजीकरण करना मतलब लोहे के चना चबाने के बराबर है। पहले तो मजदूरों को कई रिकार्ड कागज लाने के नाम पर भटकाया जाएगा। फिर इतना शुल्क बताया जाएगा जो वह नहीं भर सकता। अगर भर भी दिया तो बार बार उसको गांव से विभाग बुलाया जाएगा। जिससे वह परेशान होकर इसकी उम्मीद ही छोड़ दे। आप खुद ही सुन लीजिए।
इस पर हमने रिपोर्टिंग की। मज़दूर संगठन के अनुसार बांदा जिले में लगभग 65 हज़ार मज़दूर हैं जिनमें कुल करीब 12 हज़ार मज़दूरों का पंजीकरण है। यह संख्या ये बताने के लिए काफी है कि श्रम विभाग मजदूरों के पंजीकरण को लेकर कितना गैर-जिम्मेदार है। संगठनों ने सभी मजदूरों का पंजीकरण होने पर बहुत जोर दिया। अधिकारियों को ज्ञापन दिए, रैलियां निकाले लेकिन कोई असर नहीं पड़ा।
हमारी रिपोर्टिंग के दौरान आभास मज़दूर महासंघ के संस्थापक रविंदर कुमार भारती ने बताया कि वह कई बार विभाग से यह कह चुके है कि वह खुद उनके साथ जाने को तैयार हैं कि जो नियम पहले से भी बना हुआ है कि मज़दूरों के घर घर जाकर पंजीकरण करें ताकि सभी मज़दूरों को उचित लाभ मिलने लगे पर उन्होंने इस पर कोई जिम्मेदारी नहीं ली। मज़दूर आज भी परेशान होकर विभाग से लौट जाता है। हैरान परेशान होकर ये उम्मीद छोड़ देता है।
जो मज़दूर पंजीकृत भी हैं वह भी लाभ लेने से वंचित हैं। कोरोना टाइम पर मजदूरों को फ्री राशन लेने के लिए श्रम विभाग से बने श्रमिक कार्ड की अपडेट रसीद दिखानी पड़ती है। कोटेदार बोलते हैं कि श्रम विभाग से रसीद निकलवा कर लाओ। ये रसीद भी बड़े मुश्किल से या फिर मिलती ही नहीं है। इस काम के लिए विभाग में लम्बी कतार लगती है।
कुल मिलाकर श्रम विभाग मज़दूरों की मदद करने के बजाय उनको ही परेशान ही करता है जिनके लिए इस विभाग को जिम्मेदारी दी गई है, क्यों? संगठन आवाज बुलंद करते तो हैं पर कार्यवाही तक क्यों नहीं पहुंच पाते? मज़दूरों के नाम होने वाली घोषणाएं सिर्फ घोषणा तक ही सीमित रखने का जिम्मेदार विभाग, मज़दूर संगठन या फिर खुद मज़दूर? मजदूरों के मुद्दे चुनावी मुद्दों तक ही सीमित क्यों?
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