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बनते रिकॉर्ड और सूखते पौधे - KL Sandbox
खबर लहरिया Blog बनते रिकॉर्ड और सूखते पौधे, पौधरोपण की जमीनी हकीकत

बनते रिकॉर्ड और सूखते पौधे, पौधरोपण की जमीनी हकीकत

महोबा। पेड़ पौधे पर्यावरण को बचाने के लिए बेहद जरुरी हैं और इसलिए ख़त्म हो रही हरियाली को बरकरार रखने के लिए हर साल  जिला प्रशासन व वन विभाग द्वारा जनपद भर में पौधरोपण अभियान चलाया जाता है। लेकिन रखरखाव न होने की वजह से यह पौधे सूख जाते हैं। उसकी रखवाली करने के बजाय पुरानी जगहों पर अगली साल फिर पौधरोपण करा दिया जाता है। यह क्रम लगातार जारी रहता है। लेकिन यदि विभाग पौधारोपण के साथ-साथ इनकी रखरखाव का ध्यान रखे तो चारो तरफ हरियाली ही हरियाली दिखाई दे।

The ground reality of plantation

लेकिन ऐसा नहीं है यह भी एक रोजगार जैसा बन गया है। पौधरोपण के लिए नर्सरी तैयार कर और उसे बेचकर पैसे कमाये जाते हैं। लेकिन सूखे पेड़ो की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता। हमने महोबा जिले के लोगों से जाना की जो बरसात के समय में पौधे लगाये गये थे उनकी इस समय क्या स्थिति है

कहते हैं आमजन-

महोबा जिला के ब्लाक जैतपुर,  तहसील कुलपहाड़, कोतवाली कुलपहाड़,, गांव सतारी  के राममिलन और कल्लू जो प्रकृति प्रेमी हैं उन्होंने हमें बताया कि भले ही वन विभाग के तहत हर साल वृक्षारोपण होता है लेकिन क्या वृक्षारोपण सक्सेज है? या बस नाम के ही लिए प्रचार होता है और फिर वृक्षारोपण के बाद कोई अधिकारी यहां देखने तक नहीं आते हैं। बस विभाग खानापूर्ति करके चला जाता है। और आंकड़े कागजों में दर्ज हो जाते हैं।

जिन्दा बचे पौधों की हो देखभाल तो बढ़ेगी हरियाली 

The ground reality of plantation

रामकुमार ने बताया है कि आज से 15 साल पहले इतने पेड़-पौधे थे कि पर्यावरण शुद्ध रहता था अगर पेड़-पौधे हर साल जैसे लगवाए जाते हैं वैसे उनकी देखभाल हो तो वह तैयार हो जाएंगे देखा जाए तो जंगलों में पेड़ सूखे पड़े हुए हैं 20 साल पहले की अगर बात करें तो जंगलों में और सड़क के किनारे बहुत पुराने-पुराने पेड़ लगे होते थे लेकिन सड़कों का चौडीकरण हुआ तो वह भी काट दिए गये जो पुरानी चीजें हैं वह बिल्कुल नहीं देखने को मिलती हैं प्रकृति का नुकसान मनुष्यों को विनाश की तरफ ले जाता है। यही वजह है की आज वर्षा इतनी कम होती है उसकी वजह से कई प्रकार के नुकसान (फसल न होना, तालाब सूखा पड़ना, जानवरों का पानी के लिए भटकना) लोगों को झेलने पड़ते हैं।

रामकुमार का कहना है कि “मेरा वन विभाग से यही अनुरोध है कि जो हर साल वृक्षारोपण होते हैं उसकी इतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी उसके देखभाल की आवश्यकता है अगर 1 साल में 50 पेड़ लगाए गए हैं तो 50  पेड़ों के लिए भी इंतजाम होना चाहिए उनको खाद पानी मिलना चाहिए ताकि उनका पालन-पोषण हो सके और वह जीवित रह सकें लेकिन विभाग वृक्षों को लगाकर भूल जाता है।दुबारा उसकी सुधि नहीं लेता।”

स्थानीय निवासी शांति देवी कहती है कि यहाँ बेलाताल के पास में एक नर्सरी है उसमें छोटे-छोटे पौधे तैयार किये जाते हैं। लेकिन प्वाहन पानी की सुविधा नहीं पर वहां वन विभाग के तहत टैंकरों से पानी डाला जाता है ठीक वैसे ही जो हमारे पहले के लगे पौधे हैं उनकी भी देखभाल करनी चाहिए। मलखान बताते हैं कि जो विभाग है वह सिर्फ खानापूर्ति में ही लगा रहता है। न यहाँ पानी की कमी है न टैंकरों की, बस काम होना चाहिए।

वृक्षारोपण के बाद पौधों को जीवित रखने की कोई नहीं है कार्ययोजना

The ground reality of plantation

अजनर रेंज के रेंजर सीबी सिंह ने बताया कि “लोगों के आरोप से हम सहमत हैं पेड़ हर साल लगा देते हैं लेकिन संसाधन ना होने के कारण हम उनकी देखभाल नहीं कर पाते हैं, क्योंकि हम लोगों का वृक्ष लगाने का एक लक्ष्य निर्धारित होता है हम वृक्षों को तैयार करने की बहुत कोशिश करते हैं कि कोई पेड़ काटे ना अगर हमारे विभाग में वृक्षारोपण के बाद चारदीवारी कराने की व्यवस्था करा दी जाए तो शायद इतनी दिक्कत नहीं होगी। हमारे पेड़ सुरक्षित रहेंगे।

यह आर्टिकल खबर लहरिया के लिए रिपोर्टर श्यामकली द्वारा कवरेज और सीनियर प्रोड्यूसर ललिता द्वारा लिखा गया है।