खबर लहरिया ताजा खबरें लॉकडाउन में बंद हुई ट्रेन तो छिन गया आदिवासी परिवारों के पेट का निवाला, देखिये द कविता शो|

लॉकडाउन में बंद हुई ट्रेन तो छिन गया आदिवासी परिवारों के पेट का निवाला, देखिये द कविता शो|

1.नमस्कार दोस्तों द कविता शो के इस एपीसोड में आपका स्वागत है ।दोस्तों इस बार मैं बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा करने जा रही हूं आप मेरी इस चर्चा को पूरा सुनिएगा, मैं इस बात करने जा रही हूं आदिवासी समुदाय की जो पिछले पांच माह से भूखे हैं पेट भर दाना नहीं मिला इनको। कारण है लाक डाउन के कारण ट्रेनों का बंद होना ।हमारी सरकार ने सारी ट्रेने बंद करवा दिया था और ट्रेन ही एक मात्र साधन थी बुंदेलखंड के आदिवासियों के लिए ,जिसमें वो लकड़ी लाद कर डोभौरा ,मझगवा,सतना, चित्रकूट,बांदा अतर्रा सहित कयी शहरों में जाती थी ।वहीं लकड़ी बेच कर जो पैसे मिलते थे उससे आटा सब्जी दाल तेल और भी रोजमर्रा की चीजें खरीद कर ले जाती थी तब उनके घरों में चूल्हा जलता था और पेट की भूख मिटती थी लेकिन सरकार ने इन गरीब आदिवासियों के पेट पर लात मार कर इनकी जीवन दायिनी ट्रेन को बंद करवा दिया और पलट कर पूछा भी नहीं कि जिनके लिए कमाई का और कोई जरिया नहीं है वो क्या खायेगें। 2.दोस्तों सरकार का पैसा जाता कहां है,इतनी सारी जो योजनाएं हैं वो योजनाओं का लाभ धरातल पर नहीं है,बहुत सारे आदिवासी परिवारों को तो योजनाओं की जानकारी तक नहीं है। श्रम विभाग के तहत जो मजदूरों का पंजीकरण होना चहिए वो न हुआ है न ही लोगों को जानकारी है ,एकलव्य महाविद्यालय जो विशेष आदिवासी बच्चों के लिए है उसके बारे में लोगों नहीं पता है। आखिर कार सरकार की नजर में ये आदिवासी कैसे छूट गये ।
3.मैं आदिवासियों के स्थिति को जानने के लिए उनके गांव गयी ,एक एक घर गयी ।दोस्तों आदिवासी नमक चावल खाकर जिंदा हैं क्या आप लगातार चावल और सादा नमक खा सकते हैं ? मैंने जब आदिवासी औरतों से पूछी कि आप सरकार से क्या मांगना चाहती हैं । दोस्तों आदिवासी महिलाओं ने सरकार से किसी तरह की मदद नहीं मांगी,पैसे नहीं मांगे,अनाज नहीं मांगे,कोई योजना नहीं मांगी ,उन्होंने कहां मोदी सरकार हमारी ट्रेन वापस चलवा दो ।हमारी जीवनदायिनी ट्रेंन कानपुर अद्धा ,झांसी पैसेंजर और सटल को वापस चालू करवा दो हम भूखें हैं।हमारे बच्चे भूखे हैं।
4.महिलाओं ने ये भी कहां की हम तो सरकार की चोरी करते हैं दीदी ,हमको तो लकड़ी भी नहीं काटने दिया जाता है ।जब बेचने के लिए जाते हैं तो पुलिस अलग से पैसे लेती है ।ये सब सुन कर लगा कि उनको अपने अधिकारों की जानकारी भी नहीं है ।वो क्यो बोल रही हैं कि हम सरकार की चोरी करते हैं अरे जंगल तो आदिवासियों का है सदियों से वो जंगल में रहें हैं वो ही उनके लिए जीवन दायिनी है ।
5.आजकल आदिवासी समुदाय जंगल से ,फेनी की पत्ती ,मुर्री घुंघची और आंवला तोड़ कर लाते हैं और उसको सुखा कर कच्चा माल बाजार में बेचने जाते हैं। बड़े बड़े व्यापारी इन जड़ी-बूटियों को सस्ते दाम पर खरीदते हैं मुर्री नब्बे रूपये की पांच किलो,फेनी की पत्ती 200रूपये किलो और बाकी की चीजें भी औने पौने दामों में खरीदा जाता है। और यही चीजों को आप मार्केट से जब खरीदेगें तो मंहगे दामों पर मिलता है ।यही हाल किसानों के साथ भी होता है। तो आप सरकार की दोगली नीतियों को बखूबी पहचान सकते हैं ।और ऐसी स्थिति में भी मीडिया जरूरी मुद्दों को दबाना चाहती है।ऐसे मुद्दों के बारे में या तो उनको पता नहीं है या फिर जानकर पर्दा डालती है ।
6.एक बड़ा सवाल मेरा समाज सेवी संस्थाओं से भी है, बहुत सारे एनजीओ आदिवासियों के नाम से फंड लाते हैं उनकी फोटो और विडियो सोसल मीडिया पर खूब अपलोड होती हैं लेकिन उनका भी काम कोरा कागज सावित हुआ है ,आखिर ये आदिवासियों तक राशन सामग्री का वितरण क्यो नहीं हुआ,लाकडाउन के बाद रोजगार छिनने पर इनके गांवों से एनजीओ के लोग गायब क्यों हो गये ? आज सवाल मैं सिर्फ सरकार बस से नहीं पूछ रही हूं जितने भी राजनैतिक पार्टी,धरना सेठ और एनजीओ के लोग हैं वो सब जवाब दें बोलती आवाजें और लोगों की भूख मेरे कैमरे में कैद हैं ।
7.तो दोस्तो क्या आपके पास भी कोई सवाल हैं तो हमें लिख भेजिए हम एक संस्था के साथ काम कर रहे है जो ग्रामीण वित्त योजनाएं पर काम करती है, डिजिटल फाइनेंस और सरकारी योजनाओ के बारे में जागरूकता बढ़ाना चाहती है – तो अगर आपके कोई भी सवाल है आज के एपिसोड को लेके तो आप हमे कमेंट बॉक्स में बताइये, मैं उन संस्था के साथ आपके सवालों पे चर्चा करुँगी और हमेशा की तरह आपकी एडिटर देगी जवाब अगर आपको मेरा ये शो पसंद आया हो तो लाइक करें कमेंट करें और दोस्तों के साथ में सेयर जरूर करें