नरेंद्र मोदी को मिला आईजी सम्मान : कितना हास्य और कितना व्यंग्य है सम्मान ?
नरेंद्र मोदी, अटल बिहारी वाजपयी के बाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री है जिसे आईजी नोबेल पुरूस्कार 2020 से सम्मानित किया गया है। प्रधानमंत्री को यह अवार्ड “कोविड-19 का उपयोग करके दुनिया को यह सिखाने के लिए दिया गया कि वैज्ञानिकों की तुलना में राजनेताओं पर भी जीवन और मृत्यु का तुरंत प्रभाव पड़ सकता है”। मतलब महामारी सिर्फ वैज्ञानिकों को ही नहीं बल्कि राजनेताओं के जीवन और मृत्यु पर भी असर डालती है। जैसे वैज्ञानिक महामारी का इलाज ढूंढते हैं वैसे ही राजनेता भी जनता को बचाने के लिए अलग-अलग काम करते है।
भारत ने आईजी पुरूस्कार किसके साथ साझा किया है ?
नरेंद्र मोदी ने आईजी अवार्ड ब्राजील के जायर बोलोनसरो, ब्रिटेन के बोरिस जॉनसन, तुर्की के रेसेप तैयप एर्दोगन, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, तुर्कमेनिस्तान के गुरबंगुली बर्दीमुहम्मदो, बेलारूस के अलेक्जेंडर लामाशेंको, मेक्सिको के एंड्रीस मैनुअल लोपेज ओबार्डोर और संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ बांटा है।
इसके अलावा भारत और पकिस्तान सरकार को इस साल शांति बनाये रखने के लिए भी साझा पुरुस्कार दिया गया है । यह अवार्ड “आधी रात में चुपके से राजनीतिज्ञों के दरवाज़े पर जाकर घंटी बजाना और फिर दरवाज़ा खुलने से पहले ही भाग जाना” के लिए दिया गया है।
प्रधानमंत्री को आईजी अवार्ड क्यों दिया गया ?
पीएम मोदी को चिकित्सा शिक्षा में उनके योगदान के लिए आईजी नोबेल 2020 से सम्मानित किया गया। साथ ही महामारी में लोगों को जागरूक करने के लिए भी। अगर देखा जाए तो इस वक़्त कोरोना महामारी के मामले में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है। ऐसे में पुरूस्कार की यह वजह बताना भी हास्य सा लगता है। एक तरफ जहां कोरोना की वजह से करोड़ो लोग बेरोज़गार हो गए, प्रवासी मज़दूरों ने अपनी जान गवां दी और कई स्वास्थ्य कर्मचारियों की भी इसमें मौत हो गयी। जिसमें सरकार के अनुसार उनके पास इन लोगों में से किसी के भी कोई आंकड़े नहीं है। साथ ही बेरोज़गारी से निपटने के लिए भी सरकार ने कोई उपाय नहीं किया है। सब कितना अटपटा सा लगता है कि सरकार को अपने देश की जनता के बारें में मालूम ही नहीं है कि महामारी ने कितने लोगों को बेसहारा कर दिया, उनसे उनका जीवन छीन लिया।
प्रधानमंत्री को चिकित्सा क्षेत्र में पुरूस्कार देना, जुमला लगता है। देश में जहां हॉस्पिटल्स में कोरोना मरीज़ों को रखने की जगह नहीं है , उचित तकनीकों की कमी है, सभी के लिए वेंटिलेटर्स नहीं है, गरीब परिवार अच्छे हॉस्पिटल्स में जाकर इलाज नहीं करा सकता। इन सारी चीज़ों की कमी होने के बाद चिकित्सा क्षेत्र में प्रधानमंत्री द्वारा किया गया योगदान कितना है,साफ़ पता चलता है।
साथ ही महामारी की शुरुआत में प्रधानमंत्री ने लोगों से पीएम केयर फण्ड में योगदान करने के लिए कहा था। ताकि महामारी काल के समय में इन पैसों से लोगों की मदद की जा सके। लोगों ने भी पीएम केयर फण्ड में करोड़ो रूपये दिए। लेकिन आज तक पता नहीं चला कि लोगों द्वारा दिए गए उन पैसों का क्या हुआ या उसे कहां इस्तेमाल किया गया।
और किन लोगों को आईजी पुरुस्कार मिला है ?
1998 में अटल बिहारी वाजपेयी को अपने परमाणु हथियार का “आक्रामक रूप से शांतिपूर्ण” विस्फोट के लिए सम्मानित किया गया था। उस वक़्त अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। सिर्फ पीएम ही नहीं और भी कई भारतियों ने सार्वजनिक स्वास्थ्य, शांति और गणित सहित कई क्षेत्रों में आईजी पुरूस्कार जीता है। साल 2003 में लाल बिहारी ने “एसोसिएशन ऑफ़ डेड पीपल” बनाने के लिए इसे जीता था। लाल बिहारी एक किसान और यूपी के आज़मगढ़ के एक सामाजिक कार्यकर्ता थे। 2002 में के.पी. श्रीकुमार और जी निर्मलन ने “हाथी की सतह क्षेत्र की गणना” करने के लिए इसे जीता था। चित्तरंजन एंड्रेड और बीएस श्रीहरि को सम्मान “बच्चे असल में अपनी नाक उठा सकते हैं” कि खोज करने को मिला।
आईजी नोबेल अवार्ड क्या है ?
यह मामूली वैज्ञानिक कामयाबियों को मनाने के लिए दिया जाने वाला व्यंग्य सम्मान है। इसे हर साल हास्य-विज्ञान पत्रिका ‘एनल्स ऑफ इम्प्रूवबल रिसर्च‘ द्वारा दिया जाता है। जो की विशेष रूप से हास्यपूर्ण समाचार कवरेज और वर्तमान की वैज्ञानिक घटनाओं पर ध्यान देती है। यह पुरुस्कार हार्वर्ड विश्वविद्यालय के सैंडर्स थिएटर के समारोह में दिया जाता है। पुरूस्कार नोबेल विजेताओं द्वारा एक हज़ार या इतने ही लाइव दर्शकों के सामने दिया जाता है। यह अवार्ड सिर्फ हास्य के लिए होते हैं, इन्हें वैज्ञानिक उपलब्धि के तौर पर गंभीरता से नहीं लिया जाता है।
आईजी नोबेल पुरूस्कार, नोबेल पुरूस्कार से किस तरह अलग है ?
आईजी पुरूस्कार अजीब और विचित्र उपलब्धियों के लिए दिया जाने वाला हास्य पुरूस्कार है। वहीं नोबेल पुरूस्कार अच्छे और सकारात्मक कामों के लिए दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए ,इस साल आईजी मनोविज्ञान पुरस्कार कनाडा के मिरांडा गियाकोमिन अमेरिकी निकोलस को दिया गया। उन्होंने कहा कि “भौंहों को देखकर यह पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति आत्ममुग्ध है या नहीं”। 2010 में भौतिक विज्ञानं में आंद्रे ग्रीम को यह पुरूस्कार इसलिए दिया गया था कि उसने “चुंबक की मदद से मेंढक को हवा में उड़ाया था”।
प्रधानमंत्री को आईजी पुरूस्कार मिला, इस बात पर हैरानी नहीं होती क्यूंकि प्रधानमंत्री ने अजीब और हास्य वाले काम तो किये ही हैं। एक तरफ प्रधानमंत्री मज़दूरों के पाँव धोते हैं और वहीं दूसरी तरफ उनकी सरकार के पास मरे मज़दूरों की जानकारी ही नहीं है। सरकार बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का नारा देती है। वहीं एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार भारत में एक दिन में लगभग 91 बलात्कार के मामले में होते हैं।
जब भाजपा की सरकार बनी तो स्वच्छ भारत अभियान का नारा दिया गया गया था। इस मिशन की असलियत भारत के गाँवों और शहरों की तंग गलियों में अच्छी तरह से देखने को मिलती है। जहां कूड़ेदान नहीं है और न ही कोई सफ़ाई करने वाला। हास्य और व्यंग्य पुरूस्कार मिलना, इतनी सब चीज़ो के बाद बहुत जायज़ है। हम पुरूस्कार को गंभीरता से लेते हुए यह समझ सकते है कि आईजी पुरूस्कार किस तरह प्रधानमंत्री की छोटी-मोटी नज़रअंदाज़ करने वाली उपलब्धियों के लिए दिया गया है। जो कि प्रधानमंत्री ने असल समस्याओं का समाधान न करने पर हासिल किया है।