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बुन्देलखण्ड में आज भी फलता- फूलता है अंध विश्वास - KL Sandbox
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बुन्देलखण्ड में आज भी फलता- फूलता है अंध विश्वास

बुन्देलखण्ड के बांदा जिले के अन्तर्गत आने वाले मोतियारी गांव में सोहारीलाल नाम के एक बाबा की लगभग छह महीने पहले मौत हो गई थी.जिसकी मिट्टी को मोतियारी और खरौंच गांव के बीच नदी किनारे कोलाहे के जंगल में दफनाया गया था.जहां 15 दिन पहले एक अफवाह फैली की बाबा के चबुतरे में सिद्धि फुरी है.लोगों की दुख बाधाएं  ठीक हो रही हैं. ये चर्चा लोगों के बीच आग की तरह फैल गई| वहाँ दूर-दूर से हर रोज दसियों हजार की संख्या में लोग ट्रेक्टर मोटरसाइकिल और आटो में भर-भर कर आने लगे और 15 दिन तक खूब जोरों का मेला चला|
नरैनी से लेकर गांव तक  रोड में वाहन और लोग ना अमाने लगे. लेकिन पुलिस उस मेले को बंद कराने में ना काम रही| इसी तरह 15 जनवरी 2019 में भी नरैनी ब्लाक के शहबाजपुर गांव में सत्ती होने का प्रकरण सामने आया था. जिसको सुनते ही गांव में अंधविश्वास के कारण लाखों की संख्या में भीड़ इकट्ठी हो गई थी.पुलिस ने बड़ी मुश्किल के बाद काबू पा पाई थी.पर लोग  अफवाह से बाहर निकलने का नाम नहीं ले रहे हैं|

आखिरकार क्यों देते हैं लोग अंधविश्वास को बढा़वा

नरैनी कस्बे की सुनीता का कहना  है की मोतियारी गांव का रहने वाला सोहारीलाल नाम का एक बाबा जो झांड फूंक करता था.उसकी छह महीने पहले मौत हो गई थी.उसकी समाधी नदी किनारे जंगल के पास कोलाहे में बनाई गई थी. उस समाधी के पास एक अपंग आदमी को घर वाले मरा समझ कर डाल आये थे और वह ठीक हो गया है.तब से वहाँ भारी मेला लग रहा था. दूर-दूर से लोग मारीजों को खटिया में लाद कर लाते थे और उनकी बाधाएं ठीक होती थी. लोगों का विश्वास बढ़ रहा था. पर पुलिस प्रसाशन ने दिन रात उस आस्था को भंग करने में लगा दिया. यहां तक की 16 सितंबर को पुलिस जेसीबी मशीन लेकर पहुंच गई. बाबा की समाधी को उखाड़ कर नदी में फेकवाने के लिए फिर भी ना काम रही. जेसीबी मशीन समाधी स्थल तक पहुचंने से पहले ही नाले में घुस गई. इसके पहले भी कई बार पुलिस वहां लोगों को रोकने में मार खाई है.पर कानून के आगे लोगों को हार माननी पडी़|

क्या है इस सच्चाई के पीछे का राज

खरौंच गांव के रहने वाले मुन्ना रही बताते हैं की उन्होने उस समाधी स्थल की बहुत चर्चा सुनी थी. उनके गांव का ही मामला है,तो वह भी पिछले संडे वहां गये थे. यह तो नहीं बता सकते वो की किसकी क्या बीमारी ठीक हुई.पर हां भीड़ का कोई संभार नहीं था बाबा का चबुतरा नारियलों और पैसों से ढ़का हुआ था.लोग अभवा रहे थे| समाधी स्थल से लेकर नरैनी तक जगह-जगह नारियल की दुकाने और साधनों की लाइन लगी थी | जिसे देखकर ये लग रहा था की अस्था में सच्चाई हो या ना हो. लेकिन अन्धविश्वास के सहारे लोगों का रोजगार अच्छा खास चल रहा है|  अगर किसी गरीब की मदद और सामाजिक काम के लिए लोगों को बुलाया जाता तो शायद इतनी भीड़ इकट्ठा नहीं होती.लोगों के पास इकट्ठा ना होने के लिए कई बहाने होते काम से फुर्सत ही नहीं मिलती,पर अंधविश्वास के चलते बिना कहे भीड़ इकट्ठा हो रही है|

मेला बंद होने से लोगों में आक्रोश

मोतिहारी गांव के बुजुर्ग रामपाल 18 तारीख को गांव से रिक्शे में बैठकर नरैनी आ रहे थे. उसी रिक्शे में मैं भी बैठी थी. वह एक दूसरे से बातें कर रहे थे की जिस तरह से पुलिस प्रशासन ने इस सिद्धि को बंद कराया है| उनको बाबा जरूर देखेंगे.क्योंकि ऐसी सिद्धि ना उन्होंने कभी पहले देखी है और ना ही देखेंगे यह बहुत ही प्रसिद्ध स्थान था यहां पर दसियों हजार लोग आ रहे थे. लेकिन प्रशासन अपने आदत से बाझ नहीं आया और प्रतिदिन लोगों को छेड़ता रहा जगह जगह पर बैरियर लगा दिया.नाका ताक कर बैठते रहे और साधन नहीं निकलने दिया |
ताकि लोग पहुंच ना पाए फिर भी लोग वहां पहुंचते रहे है. अगर वहां पुलिस जाती रही तो पुलिस वालों को भी लोगों ने कई बार सबक सिखाए हैं. इसके बावजूद भी कानून के सामने लोगों को झुकना पड़ा और मेला स्थगित कर दिया गया| अब वहां पर लोगों की जगह पुलिस फोर्स का डेरा  है|

आखिरकार 15 दिन क्यों लगे मेला बंद करवाने में

कहने को तो बदलते समय के साथ लोगों में बहुत ही जागरूकता बढ़ गई है. लेकिन अन्धविश्वास को लोग आज भी बढावा दे रहे हैं|  उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में कोई भी बात और धर्मिक चीज को सुनते ही बिना सोचे समझे एक बड़ा यीशु बना भीड इक्कठी कर ली जाती हैं| जैसे की अभी 15 दिन तक खरौंच गांव में अंधविश्वास की जोरों पर अफवाह चली. पुलिस के लिए भी इसको रोक पाना किसी चुनौती से कम नहीं था |
भेले ही कडी़ मस्कत के बाद आज पुलिस इस मेंले को स्थागित करने में कामयाब हुई हो| लेकिन लोग सब कुछ जानते हुए भी इस अंधविश्वास को बढ़ाने से पिछे नहीं हटते|  अब सवाल यह उठता है कि बाकी जगहों पर जहां लोग अपने हक अधिकार की लड़ाई के लिए धरना प्रदर्शन करते हैं.  न्याय के लिए रैलियां निकालते हैं. तब तो दुनिया भर की पुलिस बल उन्हे रोकने के लिए इकट्ठा कर ली जाती है,तो फिर इस अंधविश्वास को रोकने के लिए क्यों नहीं पुलिस बल बलाया गया क्यों इस मेले को रोकने के लिए 15 दिन लगे.क्या ये गलत नहीं है |