खबर लहरिया ताजा खबरें प्रशांत भूषण के एक सवाल ने उठाये, सरकार और न्यायालयों पर कई सवाल

प्रशांत भूषण के एक सवाल ने उठाये, सरकार और न्यायालयों पर कई सवाल

अभिव्यक्ति की आज़ादी हर एक व्यक्ति का मूल अधिकार है। जो उसे उसके जन्म से ही मिल जाती है। साथ ही संविधान ने भी हर एक व्यक्ति को इसका हक दिया है। वह अपने विचार, अपनी भावनाएं खुले तौर पर सबके सामने रख सकता है। वह भी बिना किसी डर के। यह सारी बातें किताबो में पढ़ने में अच्छी लगती है , सुनने भी अच्छी लगती है। लेकिन असल ज़िंदगी में जब व्यक्ति इसका इस्तेमाल सच में अपने विचारो को सामने रखने के लिए करता है तो उसे चुप करा दिया जाता है। सिर्फ इसलिए क्यूंकि उस व्यक्ति की अभिव्यक्ति की वजह से कुछ सत्ता प्रधान लोगो को खतरा मह्सूस होता है। वह उस व्यक्ति को चुप कराने की फिर हर मुमकिन कोशिश करते है। चाहें उसके लिए रास्ता कोई भी हो। 

सरकार के खिलाफ ट्वीट करने की वजह से कर लिया गया गिरफ्तार

प्रशांत भूषण को भी सिर्फ अपने विचारो को रखने की वजह से गिरफ्तार कर लिया गया। प्रशांत भूषण पेशे से सुप्रीम कोर्ट में वकील है। वह अन्ना हज़ारे के साथ उनके कैंपेनइंडिया अगेंस्ट करप्शनऔर जनलोकपाprashant bhusan and CJI case बिल को अमल लाने में साथ थे। 27 जून 2020 को प्रशांत भूषण ने सरकार पर आरोप लगाते हुए ट्वीटर पर दो ट्वीट किए थे। सरकार और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बोलने की वजह से कुछ वक़्त बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। यहाँ तक की दोनों ट्वीट भी ट्विटर द्वारा हटा दिए गए जो प्रशांत भूषण ने सरकार के खिलाफ की थी।

क्या लिखा था ट्वीट में ?

पहल ट्वीट में प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट को निशाना लगाते है। वह कहते हैं कि पिछले साल, अदालत ने दशकों पुराने विवाद को सुलझा लिया। 1992  में हिन्दुओ द्वारा जिस बाबरी मस्जिद को गिराया गया था , उसी जगह पर सरकार ने मंदिर बनाने की अनुमति दे दी। यह बात सीधा मोदी सरकार को ताना कसते हुए कहा गया। प्रशांत भूषण अपने ट्वीट में लिखते हैं कि हालिया गतिविधि से पता चलता है कि  “भारत में लोकतंत्र कैसे नष्ट हो गया है।
Many questions on the government and the courts
अपने दूसरे ट्वीट में भूषण मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े की एक फोटो दिखाते है जिसमे मुख्य न्यायाधीश एक महंगी मोटरसाइकिल के साथ  बिना मास्क लगाए हुए खड़े थे। उनके आसपास काफी लोग खड़े हुए थे। ट्वीट में भूषण ने बताया कि मोटरसाइकिल का मालिक मोदी सरकार की पार्टी से संबंधित एक स्थानीय राजनेता का बेटा था।जहां कोरोनावायरस के चलते देश में लॉकडाउन  लगाया गया है वहीं शरद अरविंद बोबड़े भीड़ के साथ फोटो खिंचवा रहे है।

प्रशांत भूषण ने किया माफ़ी मांगने से इंकार

भूषण द्वारा किए गए ट्वीट को सुप्रीम कोर्ट ने अपना निरादर माना और भूषण से माफ़ी मांगने को कहा। प्रशांत भूषण ने माफ़ी मांगने से पूरी तरह मना कर दिया। वह कहते हैं की एक नागरिक और एक वकील होने के नाते, अगर कुछ गलत हो रहा है तो कुछ कहना उनका फ़र्ज़ बनता है। अपने विचार रखने के लिए अगर माफ़ी मांग भी ली जाए तो उसके कई मायने नहीं होंगे। 20 अगस्त को अदालत प्रशांत भूषण को 24 अगस्त तक का समय देती है कि वह दिए हुए समय में अदालत से माफ़ी मांग ले। लेकिन अभी तक भूषण की तरफ से कोई माफ़ी नहीं आयी है।  न्यायलय  भूषण को छः महीने की जेल और 2000 रुपए का जुर्माना देने की सज़ा सुनाती है।

प्रशांत भूषण के वकील का क्या है कहना ?

भूषण की ओर से केस लड़ रहे वकील राजीव धवन का अदालत से कहना है कि अब उन्हें भूषण को सज़ा नहीं देनी चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि अदालत को एक सामान्य निर्देश जारी करने के बाद मामले को बंद कर देना चाहिए। वहीं तीन न्यायधीशो के पीठ अरुण मिश्रा का कहना है कि अदालत निष्पक्ष आलोचना का स्वागत करती है, लेकिन अदालतों की आलोचना करने वालों को न्यायाधीशों के इरादों का समर्थन नहीं करना चाहिए। वह यह भी कहते है किहम निष्पक्ष आलोचना को सहन करते हैं और उसका स्वागत करते हैं। लेकिन हम खुद का बचाव करने के लिए प्रेस नहीं जा सकते। मैं कभी प्रेस के पास नहीं गया। अरुण  मिश्रा ने कहा कि हम एक शपथ से बंधे हैं। अरुण मिश्रा फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में न्यायधीश है। वह राजस्थान और कलकत्ता के उच्च न्यायलय में मुख्य न्यायधीश के तौर पर भी काम कर चुके हैं।
prashant bhusan and CJI case
अभी फिलहाल के लिए सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के केस की सुनवाई 10 सितंबर तक स्थगित कर दी है। अदालत का फैसला आने के  बाद ही पता चलेगा की भूषण को अदालत छोड़ देगी या फिर उसे कोई और सज़ा सुनाई जाएगी।
देखा जाए तो सब खुद को सही साबित करने में लगे हुए है। प्रशांत भूषण द्वारा उठाये गए एक सवाल ने सरकार से लेकर अदालत तक सबमें हलचल मचा दी। सिर्फ एक सवाल उठाने पर जेल में डाल देना , कहाँ तक सही है। वो भी सिर्फ इसलिए क्यूंकि सवाल सरकार और न्यायालयों पर उठाया गया था। क्या सरकार और न्यायालयों को किसी बात का डर है जो वह अभिव्यक्ति की आज़ादी का भी हनन करने के लिए तैयार है। या वह लोगो को चुप कराना चाहती है ताकि कोई और आवाज़ उठा सके। जब भी कोई अपनी आवाज़ उठाता है, उसे दबाने की इसी तरह पूरी कोशिश की जाती है। लेकिन कब तक।