आपने महिला उम्मीदवारों के पोस्टरों में फर्क देखा? अगर नहीं समझ पाए तो मैं बताती हूं मैंने देखा पुरुष सत्ता। यह सत्ता महिलाओं के राजनीतिक कैरियर में शुरू से अंत तक चलती है। उदाहरण के लिए अगर आप प्रधान पद की ही बात करें तो अगर उस गांव की सीट महिला हुई तो मजबूरी है महिलाओं को खड़ा करना। बस यहीं से शुरू हो जाती है पुरुषों की सत्ता।
महिलाओं की सहमति तो दूर उसको बताया भी नहीं जाता कि वह किस पद के लिए खड़ी है। फिर प्रचार प्रसार में खुद को चुनाव लड़ने की बात करना। जब बात कागजी तौर पर आती है तो महिला का नाम लिखा ही जाता है। पोस्टरों में महिलाओं के साथ अपनी भी फ़ोटो नाम। यह पुरुष कोई भी हो सकते हैं मतलब पिता, भाई, ससुर, जेठ, देवर, पति यहां तक कि बेटा भी। सीट जीतने पर जीत का ताज पुरुषों के सिर पर ही। बस शुरू हो जाता है महिला के नाम पर खुद काम करना।
यहां तक कि सरकारी धन का लेनदेन भी पुरूष महिलाओं के फर्जी साइन के आधार पर कर लेते हैं। यह खेल महिला उम्मीदवार के घर के लोग ही नहीं उस पद के आसपास जिम्मेदार विभाग, अधिकारी, बैंक के लोग शामिल होते हैं। तो आप समझ ही गए होंगे न और यही है पुरुष सत्ता। आप क्यों बात करते हो कि बदलते आधुनिकता के कारण हर स्तर पर महिलाएं पुरुषों से आगे हैं। अगर यह बात सही है तो ये क्या है। जो कडुवा तो है लेकिन सच है और सच हमेशा कड़वा होता है।
he’s planning his next victim pic.twitter.com/K6htfvdri6
— cat with confusing auras (@cat_auras) June 7, 2023