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कोरोना ने किया बेहाल लेकिन फिर भी सरकारी योजनाओं कि नहीं बदली चाल

कोरोना ने किया बेहाल लेकिन फिर भी सरकारी योजनाओं कि नहीं बदली चाल | नमस्कार दोस्तों, मैं हूँ मीरा देवी, खबर लहरिया की ब्यूरो चीफ। मेरे शो राजनीति रस राय में आपका बहुत बहुत स्वागत है। साथियों इस शो का मकसद ही है कि किसी भी मुद्दे पर अगर कुछ राजनीति हो रही है तो उसके प्रति सचेत करना। जब से कोरोना आया है गरीब जनता और मजदूरों की मजबूरी का खूब फायदा उठाया गया।

फायदा ही नहीं राजनीति भी की गई। पिछले साल से अब तक में मैंने दो ऐसी खबर कवरेज की जिसमें 8 परिवार के मजदूरों को बंधुवा बनाकर उनसे मजदूरी ही नहीं उनके साथ ज्यादती भी हुई। आइये इस मुद्दे पर और चर्चा करें दोनों ख़बरों की कवरेज के बाद मेरी सर्चिंग ये कहती है कि पैसे का लालच इंसान को सही और गलत का फर्क बताने में कमजोर कर देता है।

या जान बूझकर उसको उसी स्थिति में फंसाये रखा जाता है ताकि पैसा आता रहे। पहले ठेकेदार ठेके पर मजदूरों को लेकर मालिकों के हवाले कर देते हैं फिर शुरू होता है सरकारी और गैरसरकारी स्तर का शोषण। कुछ ऐसा ही मामला है बंधुवा मजदूरों की स्थिति का है। बंधुवा मजदूर संगठन के प्रयास से मजदूरों को मुक्ति तो मिली लेकिन सरकार से मिलने वाली योजनाओं का लाभ अब तक नहीं मिला। क्यों नहीं मिला इसके लिए आइये सुनते हैं उन्हीं की जुबानी। सुनकर आप हैरान तो हो गए ही होंगे न।

उन्होंने बताया कि श्रम प्रवर्तन कार्यालय बांदा से जब कोई कार्यवाही नहीं हुई तो उन्होंने बंधुवा मजदूर मोर्चा का दरवाजा खटखटाया और अपने घर तक पहुंच गए। जब बारी आई कि उनको विभाग से मिलने वाली योजनाओं का लाभ मिले तब इस मोर्चे ने भी इनको नहीं बख्शा, न ही तरस खाई। पैसा फेक तमाशा देख की कहावत पर बोले कि कुछ खर्चा पानी तो देना ही पड़ेगा।

मजदूरों को काम गांव में अब तक नहीं मिला लेकिन उन्होंने पड़ोसियों से कर्ज लेकर पांच हज़ार रुपये की राशि बधुवा मज़दूर मोर्चा के पास न्याय की उम्मीद लेकर पहुंच गए। फिर क्या मिला वही आश्वासन और अब तक कुछ नहीं हुआ। अब उनको बोला गया कि बांदा जाओ श्रम प्रवर्तन अधिकारी के पास वहां पर कागज जमा करो तब कार्यवाही होगी। वहां भी हो आये किसी तरह किराया भाड़ा की व्यवस्था बनाकर लेकिन फिर भी कुछ नहीं हुआ। अब मजदूर थक हार कर अपने घर में परिवार चलाने की जद्दोजहद में लगे हुए है।

बहुत ही दयनीय स्थिति है। दाने दाने को मोहताज हैं। इसका कहने का मतलब यह बिल्कुल नहीं कि सरकार या प्रशासन ही उनके खाने की व्यवस्था करें। मजदूर में इतनी ताकत है कि वह खुद हाडतोड़ मेहनत कर लेता है लेकिन काम तो मिले। और काम देने या रोजगार उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकार या प्रशासन की है। यहां तो उल्टा हो रहा है कि सारे रोजगार छिन गए ऊपर से कर्जदार भी बनाया जा रहा है। अगर कर्जदार बने तो ये संगठन भी साथ नहीं देंगे ऊपर से बंधुवा मजदूरी की आग में जला देंगे।

इस पूरे मामले को कवरेज करने में बहुत सारे सवाल खड़े हुए। क्या प्रशासन और मजदूर संगठन इन मजदूरों के प्रति संवेदनशील हैं? जहां विभाग ने इसके लिए कार्यवाही करने में कोई जिम्मेदारी नहीं दिखाई वहीं संगठन कार्यवाही करने के लिए सुविधा शुल्क के नाम पैसे लेकर उनको और खतरे में डाल दिया? बंधुवा मजदूर निर्देशालय तक क्या ये आवाजें पहुंचती होंगी? साथियों इन्हीं विचारों के साथ मैं लेती हूं विदा, अगली बार फिर आउंगी एक नए मुद्दे के साथ। अगर ये चर्चा पसन्द आई हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। लाइक और कमेंट करें। अगर आप हमारे चैनल पर नए हैं तो चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें। बेल आइकॉन दबाना बिल्कुल न भूलें ताकि सबसे पहले हर वीडियो का नोटिफिकेशन आप तक सबसे पहले पहुंचे। अभी के लिए बस इतना ही, सबको नमस्कार!