खबर लहरिया Blog उमर खालिद को पूर्वी दिल्ली हिंसा के मामले में पकड़ा गया, कई कार्यकर्ता सामने आए खालिद के समर्थन में

उमर खालिद को पूर्वी दिल्ली हिंसा के मामले में पकड़ा गया, कई कार्यकर्ता सामने आए खालिद के समर्थन में


जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद को फरवरी में पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के मामले में रविवार रात यानि 13 सितम्बर को गिरफ़्तार कर लिया गया। पुलिस के विशेष सेल द्वारा खालिद को पकड़ा गया। सोमवार को  दिल्ली की एक अदालत ने उमर खालिद को 10 दिन की पुलिस हिरासत में भेजा। उसे आतंकवाद विरोधी कानून यानि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत हिरासत में लिया गया। उमर खालिद को वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिये अतिरिक्त सत्र के न्यायधीश अमिताभ रावत के सामने पेश किया गया था।

उमर खालिद को करना होगा हिंसा से जुड़े 11 लाख डाटा का सामना

पुलिस ने अदालत से सोमवार को कहा कि उमर खालिद को उसके खिलाफ 11 लाख डाटा का सामना करना पड़ेगा। वहीं उमर खालिद के वकील त्रिदीप पाइस ने हिरासत  का विरोध करते हुए कहा कि वह  23 से 26 फरवरी के बीच दिल्ली में नहीं था, जब दिल्ली में दंगे हुए थे। वहीं न्यायाधीश अमिताभ रावत का कहना है कि वह इस मामले को बहुत ही गौर से देख रहे हैं और इस पर कार्यवाही अब भी चल रही है। साथ ही वह पाइस कि हिरासत के विरोध पत्र को नकारते हुए कहते हैं कि उमर खालिद के खिलाफ 11 लाख पन्नों में जो भी डाटा है, खालिद को सबका जवाब देना होगा। वकील पाइस के द्वारा सुरक्षा की चिंता व्यक्त करते हुए , न्यायलय ने खालिद की सुरक्षा के लिए डीसीपी को निर्देश दिया।

उमर खालिद पर लगाए गए,ये सारे आरोप

उमर खालिद पर देशद्रोह, हत्या की साज़िश करना , हत्या, धर्म के नाम पर अलग-अलग समूहों के बीच दुश्मनी पैदा करना और दिल्ली में दंगे कराने का आरोप लगाया गया है। पुलिस द्वारा कहा गया कि उमर खालिद ने दो अलग-अलग जगहों पर भड़काऊ भाषण दिए थे। साथ ही नागरिकों से अपील की थी कि वह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा के दौरान सड़कों पर जाम लगा दे। यह करने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा लगे कि भारत में अल्पसंख्यकों को इस तरह से प्रताड़ित किया जाता है। एफआईआर में यह भी दवा किया गया कि कई घरों में आग के गोले, पेट्रोल बम, एसिड की बोतलें और पत्थर फेंकने की भी साज़िश की गयी थी।

हिंसा को लेकर यह है पुलिस की रिपोर्ट का कहना

पुलिस की प्राथमिक रिपोर्ट में यह कहा गया कि 23 फरवरी को जाफ़राबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे महिलाओं और बच्चों को सड़कों पर जानबूझकर बैठाया गया था, ताकि वह रस्ता बंद कर सके। 24 फरवरी को पूर्वी दिल्ली में नागरिकता कानून समर्थकों और उसके कानून के खिलाफ लड़ने वालों के बीच हिंसा हुई। जिसमें कम से कम 53 लोग मारे गए थे और लगभग 200 लोग घायल हुए थे।

ट्विटर पर चल रहा है ” आई स्टैंड विद उमर खालिद “

शिक्षाविदों और कार्यकर्ताओं जैसे सतीश देशपांडे, मैरी जॉन, अपूर्वानंद, नंदिनी सुंदर, शुद्दाबराता सेनगुप्ता, आकर पटेल, हर्ष मंडेर, फराह नक़वी और बिराज पटनायक ने मिलकर उमर खालिद के लिए एकजुटता दिखाई है। साथ ही खालिद की हिरासत को “विच हंट” भी कहा है। कांग्रेस नेता शशि थरूर कहना है कि “प्रधानमंत्री कहते हैं कि वह हर प्रकार की आलोचनाओं का स्वागत करते हैं लेकिन वह यह बताना भूल गए की लोगों को आलोचना करने पर कितनी कीमत चुकानी पड़ेगी”। कार्यकर्ता योगेंद्र यादव का कहना है कि “मुझे हैरानी है कि उमर खालिद,जो की एक युवा, आदर्शवादी सोच वाला व्यक्ति है उसे गैरविरोधी कानून के तहत पकड़ा गया है। जिसने की हमेशा हर प्रकार की हिंसा और साम्प्रदायिकता  के ख़िलाफ़ आवाज़ उठायी है। यह उन नेताओं में से है जो भारत को चाहिए”। 


आवाज़ उठाने की वजह से किसी को हिरासत में ले लिया गया हो,यह कोई नई बात नहीं है। जैसे प्रशांत भूषण जो की वकील है, उनको हिरासत में सिर्फ इसलिए लिया गया था क्यूंकि उन्होंने अदालत के कार्य पर सवाल उठाये थे। एक लोकतांत्रिक देश में आवाज़ उठाने की कीमत लोगों को जेल जाकर या जान देकर चुकानी पड़ती है। आखिर कब तक सरकार और हमारी न्याय प्रणाली आवाज़ उठाने वालों को जेल में डालती रहेगी। बीजेपी नेता कपिल मिश्रा , जिसका नाम पूर्वी दिल्ली की हिंसा में बहुत आया था, जिसने दंगे कराने का भड़काऊ ब्यान दिया था। वह खुलेआम घूम रहा है। पुलिस द्वारा उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी है। यहां ये बात साफ़ दिख रही है कि न्याय प्रणाली में कितनी ज़्यादा अस्पष्टता है। आवाज़ उठाना अब मौलिक अधिकारों में नहीं रहा। जब-जब लोगों ने इसका सही उपयोग किया, उन्हें ही गुनहगार बना दिया गया।