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क्राइस्टचर्च मस्जिद हत्याकांड : 51 लोगों की हत्या करने वाले दोषी को मिली उम्रकैद ,पैरोल के बिना - KL Sandbox
खबर लहरिया Blog क्राइस्टचर्च मस्जिद हत्याकांड : 51 लोगों की हत्या करने वाले दोषी को मिली उम्रकैद ,पैरोल के बिना

क्राइस्टचर्च मस्जिद हत्याकांड : 51 लोगों की हत्या करने वाले दोषी को मिली उम्रकैद ,पैरोल के बिना

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क्रिष्टचर्च मस्जिद के हमलावर ब्रेंटन टैरेंट को 27 अगस्त 2020 को न्यूजीलैंड की अदालत ने जीवन भर की कारावास की सज़ा सुनाई। वो भी बिना किसी पैरोल ( अर्थात जिसमे व्यक्ति के अच्छे स्वभाव को देखकर सज़ा कम कर दी जाती है ) के। 29 साल के ब्रेंटन टैरेंट ने मार्च 2019 में 51 लोगो की हत्या की थी साथ ही उसकी वजह से 40 लोग घायल भी हुए थे। यह बात उसने खुद अदालत के सामने मानी। अदालत ने उसके कामों को आतंकवाद का नाम दिया। न्यायधीश में ब्रेंटन टैरेंट द्वारा की गयी हत्याओं कोआमनवीयकहा और यह भी कहा कि इस पर  ” कोई दया नहीं दिखाई जाएगी

न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री का टैरेंट को लेकर बयान

न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न ने टैरेंट की सज़ा की सुनवाई को लेकर कहा कि इसका मतलब यह है की अब उनके पासकिसी बदनामी के लिए कोई मंच नहीं होगाऔर हमारे पास उसके बारे में सोचने , देखने या सुनने का कोई कारण नहीं है वह यह भी कहती हैं कि “आज मुझे उम्मीद है कि यह आखिरी जगह है जहां हम आतंकवादी नाम को सुन या बोल रहे है

न्यायाधीश कैमरन मंडेर ने सुनवाई में क्या कहा ?


न्यूजीलैंड के इतिहास में ब्रेंटन टैरेंट द्वारा किया गया यह पहला आतंकी कार्य था। न्यायाधीश कैमरन मंडेर कहते हैं कितुम्हारे अपराध इतने संघीन है की उम्र कैद की सज़ा भी तुम्हारी सज़ा को पूरा नहीं कर सकती पैरोल का लेकर न्यायाधीश कैमरन मंडेर का कहना था कि अब नहीं तो कब। पैरोल के बिना सज़ा देने का मतलब है,अपराधी को उसके कुल सज़ा की एक हिस्सा सेवा देने के बाद भी जेल को  छोड़ने का मौका नहीं दिया जाएगा। साथ ही वह यह भी कहते हैं कि आजीवन कारावास की सज़ा सिर्फ संघीन कार्यो के लिए ही राखी गयी है। साथ ही एक कारण यह भी है कि नूज़ीलैण्ड की न्याय प्रणाली में मृत्यदंड का कोई कानून नहीं है।

कैमरन मंडेर ने टैरेंट को दिलाई हर मारे गए व्यक्ति की याद

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जस्टिस कैमरन मंडेर ने एक घंटे का समय लगाकर ब्रेंटन टैरेंट को हर एक व्यक्ति के बारे में बताया जिसे भी उसने मारा था। उन्होंने कहा कि इतने लोगो को मारने के बाद भी दोषी के चेहरे पर तो कोई पछतावा है, कोई शर्म अदालत में टैरेंट अपने वकील द्वार कहता है कि उसने पहले भी उसकी सज़ा के लिए कुछ नहीं कहा था और उसे अब भी कुछ नहीं कहना है। सोमवार 24 अगस्त से लेकर 27 अगस्त तक,पूरे चार दिन तक कार्यवाही चली। जिसमें से तीन दिन अदालत ने मृतकों के परिवारों की बातें सुनने में समर्पित की थी।

अपने पिता के मारे जाने पर ये थी सारा कासेम की भावनाएं

सारा कासेम के पिता, अब्देल्फत्तेह कासेम की मृत्यु अल नूर मस्जिद में हुई थी। वह अपने पिता के अंतिम समय में उनके साथ थी। उन आखिरी पलों में वह कहती है किअगर वह दर्द में थे,डरे हुए थे तो उनके आखिर विचार क्या थे वह बस अपने पिता हाथ पकड़कर यह कहना चाहती थी किसब ठीक हो जाएगा वह अपने आंसूओ को रोकने की कोशिश कर रही थी और ब्रेंटन टैरेंट से कहना चाहती थी किये आंसू तुम्हारे लिए नहीं है

हमला कब किया गया था ?

पिछले साल15 मार्च 2019 के दिन ब्रेंटन टैरेंट ने नूज़ीलैण्ड के दो मस्जिदों पर हमला किया था। पहले वह अल नूर मस्जिद में गया और वहां पर लोगो पर गोलीबारी की। गोलीबारी करने के तीस सेकंड के बाद ही वह अपनी कार में गया। उसने अपना दूसरा हथियार उठाया और फिर से मस्जिद में जाकर लोगों पर गोलियां  लगा। इतना ही नहीं उसने ये सारी चीज़े फेसबुक पर अपने हैडकॉम के ज़रिए लोगो को लाइव करके भी दिखाई।
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इसके बाद वह लिनवुड इस्लामिक सेंटर गया और बाहर से दो लोगों पर गोली चलायी।  उसने गोलियों से इस्लामिक सेंटर के साड़ी शीशे तोड़ दिए ताकि जो लोग अंदर है उन्हें भी मारा जा सके। अंदर से एक आदमी दौड़ता हुआ बाहर आता है और ब्रेंटन टैरेंट के पकड़ने से पहले उसकी एक बन्दूक उठा लेता है। उसके बाद दो पुलिस वाले उसका पीछा करते हैं और उसे गिरफ्तार कर लेते है। पकड़े जान के बाद टैरेंट ने पुलिस को बताया कि उसका इरादा मस्जिद को  जलाने का था पर वह ऐसा नहीं कर पाया। मृतकों में पकिस्तान, बांग्लादेश, सऊदी अरब, मलेशिया और इंडोनेशिया आदि देशो के लोग थे।

हथियारों को लेकर न्यूज़ीलैंड सरकार ने किया कानून में सुधार

मस्जिद में हुए हमले के बाद एक महीने के अंदर ही न्यूज़ीलैंड सरकार ने अपने सैन्य शैली और स्वयं चलाने वाले हथियारों पर रोक लगाकर , दोबारा से कानून बनाए। इसके लिए सांसद ने इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारों पर रोक लगाने के लिए 119 से लेकर 1 तक मतदान किया।
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इस अमानवीय घटना पर हर किसी के लिए यकीन करना मुश्किल है। ऐसे कामो के लिए तो मौत की सज़ा भी कम है। आखिर कोई इतना अमानवीय कैसे हो सकता है। लोगो की हत्या करने के बाद भी माथे पर किसी शिकन का होना, कोई पछतावा और ही कोई शर्म। बल्कि वह व्यक्ति किसी की जान लेकर मुस्कुरा रहा है। लोगो को मारने के बाद भी उसका मन नहीं भरा है। यह पढ़कर और सुनकर ही दिल दहल जाता है। क्या किसी की जान लेना इतना आसान है।
आखिर में सरकार द्वारा लिया गया फैसला लोगो को सही लग रहा है। आजीवन कारावास की सज़ा मृत्यु से ज़्यादा बड़ी सज़ा होती है। बस हैरानी की बात यह है कि अभी तक लोगो को मारने वाले को थोड़ासा भी पछतावा नहीं है। सरकार को ऐसे काम करने वाले लोगो की तरफ और भी ध्यान देने की ज़रुरत है ताकि फिर से ऐसा कुछ हो।  कानून में बदलाव करने के साथसाथ सरकार को उसका समयसमय पर निरक्षण करने की भी ज़रुरत है।