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ह्यूमन कंप्यूटर की निजी जिंदगी की कहानी है शकुंतला देवी : फिल्म रिव्यू - KL Sandbox
खबर लहरिया आओ थोड़ा फिल्मी हो जाए ह्यूमन कंप्यूटर की निजी जिंदगी की कहानी है शकुंतला देवी : फिल्म रिव्यू

ह्यूमन कंप्यूटर की निजी जिंदगी की कहानी है शकुंतला देवी : फिल्म रिव्यू

हैल्लो दोस्तों कैसे है आप लोग आप सबको स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई। दोस्तों हमारा देश वीर जवानों का माना जाता है उनकी काबिलियत, उनका त्याग हम पर क़र्ज़ है जो हमेशा रहेगा। लेकिन कई ऐसे लोग है जिन्होंने देश का नाम दुनिया में रौशन किया है जी हाँ दोस्तों आज हम बात करेंगे ह्यूमन कंप्यूटर नाम से सम्मानित शकुंतला देवी पर बनी फिल्म की तो चलिए थोड़ा फ़िल्मी हो जाते है |
आर्यभट्ट और रामानुज के बाद शकुंतला देवी ने गणित के क्षेत्र में भारत का परचम विश्व में लहराया. ये फिल्म इसी अदभुत बुद्धि वाली महिला के जीवन पर बनी है. शकुंतला देवी 1940 से साल 2000 की एक लड़की के असाधारण जीवन की कहानी है.इस फिल्म में शकुंतला देवी का बचपन, जवानी, वृद्धा अवस्था तक शामिल किया गया है। उनके सफर की शुरुआत महज पांच साल की उम्र में ही हो गई थी, जब वो गणित के बड़े से बड़े सवाल भी मुंह जुबानी हल कर दिया करती थीं। वह स्कूल जाना चाहती थीं, लेकिन बेरोजगार पिता शकुंतला की प्रतिभा के शोज कराने लगे। परिवार को पैसा मिलने लगा और शकुंतला देवी को पूरे शहर में प्रसिद्धि . फिर देश में और फिर देखते ही देखते विश्व भर में।
शकुंतला देवी के बिंदास स्वभाव और आजाद ख्याल ने उन्हें परिवार से दूर कर दिया। खासकर मां के प्रति एक गुस्सा था क्योंकि उन्होंने पिता के गलत तौर तरीकों को सहते जिंदगी गुजार दी। इधर अंकों के साथ शकुंतला देवी का रिश्ता हर दिन गहराता चला गया। कंप्यूटर से भी तेज गणित के सवालों को हल करने वाली इंसान के तौर पर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में उनका नाम अंकित हुआ। जिसके बाद दुनिया उन्हें ‘ह्यूमन कंप्यूटर’ के नाम से जानने लगी।
एक मिंट आपको ये तो नहीं लगता की ये फिल्म पढाई लिखे से जुडी और बोरिंग सी है तो मैं आपको बता दूँ की इस फिल्म में अंको के साथ ही उनके पारिवारिक रिश्तों खास कर माँ बेटी के रिश्तों को भी दर्शाया गया है वि भी बिलकुल इस अंदाज़ में की आप अपनी हसी रोक नहीं पाएंगे। लेकिन इसके साथ ही आप खुद को भी सोचने पर मज़बूर हो जाएंगे की जिंदगी के किस पल में आपने क्या फैसला लिया आप उनकी जगह होते तो क्या करते / वगैरह वगैरह।
शकुंतला देवी की एक बात बहुत ही मज़ेदार थी वो थी की उन्हें ‘नॉर्मल’ रहना समझ नहीं आया। उनका मानना था कि इंसान और पंड़ों में यही फर्क है कि इंसान एक जगह टिक कर नहीं रह सकता, जबकि पेड़ जड़ों से जकड़े होते हैं। इस थ्योरी की वजह से व्यक्तिगत जीवन में अपनी बेटी से वह प्यार, सम्मान ना पाना उन्हें खलता रहा। उनके भीतर लगातार एक लड़ाई चलती रही – सिद्धांतों, कर्तव्य और आकांक्षाओं के बीच। जिससे वह किस तरह उबरती हैं, ये जांनने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
ऐक्टिंग की अगर बात करूँ तो शकुंतला देवी के किरदार में विद्या बालन ने जान फुक दी है. ये उनके ऐक्टिंग करियर का बेस्ट ऐक्टिंग अगर कहूं तो गलत नहीं होगा। शकुंतला की बेटी अनुपमा के किरदार में सान्या मल्होत्रा और अनुपमा के पति के किरदार में अमित साध ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। डायरेक्टर अनु मेनन ने बेहद ईमानदार तरीके से शकुंतला देवी की जिंदगी को फिल्म में दर्शाया है। एक ऐसी महिला की कहानी जिसने आज़ादी का सही मतलब समझाया जिस पर देश को नाज़ है और महिलाओं को गर्व।
तो इस फिल्म को मेरी तरफ से मिलते है 5 में से 4 स्टार आपको ये फिल्म कैसी लगी हमें जरूर से बताये ये फिल्म आपको अमेज़न प्राइम पर देखने को मिल जाएगा। अगर ये वीडियो पसंद आई हो तो लाइक और दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें। और हाँ अगर आपने हमारा चैनल सब्स्क्राइव नहीं किया है तो अभी कर लें। तो दीजिये मुझे इज़ाज़त जय हिन्द।