खबर लहरिया Blog बारिश ना होने से नहीं हो पा रही धान की रोपाई

बारिश ना होने से नहीं हो पा रही धान की रोपाई

मौसम रुठा तो धान और खरीफ फसलों की बोवाई को लगा ग्रहण

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड मैं मानसून अन्नदाताओं से एक बार फिर रुठा नजर आ रहा है,क्योंकि बारिश ना होने से धान कि रोपाई और खरीफ की फसल की बुआई प्रभावित हो रही है| जिसको लेकर किसान बहुत ही चिंतित हैं किसानों का मानना है की बांदा जनपद में इस बार 132918 हेक्टेयर में खरीफ फसल की बुआई का लक्ष्य था|  लेकिन अभी तक 68857 हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई है, जिसमें सबसे ज्यादा धान की फसल की बुआई प्रभावित हो रही है| क्योंकि बारिश ना होने के कारण किसानों के खेत सूखे पड़े हुए हैं और धान की फसल एक ऐसी फसल है, जिसको सबसे ज्यादा पानी की जरूरत होती है|

बडी मेहनत से तैयार हुई धान की नर्सरी

  इस साल शुरुआती दौर में मानसून अच्छा देख और बारिश होते देख किसान धान की नर्सरी तैयार करने में जोरों पर जुट गए थे| बहुत ही मेहनत के साथ खून पसीना एक कर के किसानों ने धान की नर्सनी तैयार की है,जिसमे अधिक पैदावार देने वाले धान पंथ 12 और सोनम प्रजाति का धान यहां के किसानों की पहली पसंद है, जिसकी नर्सरी अधिक मात्रा में तैयार की गई है| क्योंकि अब तो कई अलग अलग प्राजतियों के नये धान के बीज भी बाजार में आ गये है| लेकिन नई प्रजातियों के धान वाले बीज अभी भी बहुत कम किसान पसंद करते है इस लिए अभी भी सबसे ज्यादा नर्सरी पंथ 12 और सोनम की ही तैयार की गई है| लेकिन बारिश की कमी के कारण किसान नर्सरी तैयार करने के बाद भी धान की रोपाई नहीं कर पा रहे हैं और जो धान रोपाई हो भी गई है वह भी नहर से दूर वाले खेतों की सूख रही है| इस लिए किसान बहुत ही चिंतित और परेशान नजर आ रहा है|

 सुनीए किसानों की जुबानी

नरैनी कस्बे के किसान महेश्वरी दीक्षित और रशिक बिहारी खरे  बताते हैं कि बांदा जनपद का नरैनी और अतर्रा बेल्ट धानहा क्षेत्र माना जाता है| यहां 70 परसेंट किसान धान की खेती करते है और ये ऐरिया धान की खेती के नाम से फेमस है| यहां का किसान खरीफ के समय धान की बोआई ज्यादातर करता है| इस लिए शुरुआती दौर में मौसम बहुत ही अच्छा था और उनको उम्मीद जग रही थी कि इस साल जिस तरह से पर्यावरण स्वच्छ हुआ है और मानसून अपना संतुलन बना रहा हैं और मौसम अच्छा दिख रहा है |
तो पैदावार भी अच्छी होगी|  इसी को देखते हुए  किसानों ने बहुत तेजी से रातों दिन मेहनत करके धान की नर्सरी तैयार कर ली| क्योंकि धान की नर्सरी तैयार करने के लिए किसानों को कडी मेहनत के साथ पानी में रह कर ही जुताई बुआई कर धान के बेड की नर्सरी तैयार करनी पड़ती है| जिसमें बहुत ही मेहनत का काम होता है,लेकिन अब नर्सरी तैयार होने के बाद बारिश ना होने से रोपाई ठीक से नहीं हो पा रही खेत सूखे पडे़ है साथ ही तिल और अरहर की बुआई भी प्रभावित हो रही है|
किसानों का यह भी कहना है कि बुंदेलखंड में खास तौर पर बांदा जिले में ही धान की परंपरागत अच्छी पैदावार होती है और यहां का देसी धान खाने में भी बहुत स्वादिष्ट और मीठा होता है| जिसको अपने जिले के अलावा आस-पास के लोग भी खाने के लिए बड़े शौक से ले जाते हैं, लेकिन पिछले साल धान कटने के बाद बारिश ने बहुत से किसानों का धान खेतों खलिहानों में भीगा दिया और अब इस साल बारिश न होने से धान नहीं लग पा रहा है और किसान हर रोज बारिश का इंतजार करते हैं| जबकि 15 जुलाई तक ज्यादातर बेड लग जाती थी| लेकिन इस साल धान रोपाई की स्थिति ठीक नहीं है लगभग 20 प्रतिशत ही धान की रोपाई हो पाई होगी|

 बारिश नहीं हुई तो कैसे होगी धान की रोपाई

नरैनी ब्लाक के पडमई गांव के  किसान  राजकुमार का कहना है कि उनके गांव में धान की नर्सरी तो किसानों ने तैयार कर ली है लेकिन अब लोग बारिश होने का इंतजार कर रहे हैं| अभी तक उनके गांव में धान की रोपाई शुरू नहीं हुई क्योंकि जिस तरह से धान की रोपाई के लिए लबालब खेतों में भरा पानी होना चाहिए उस तरह की बारिश नहीं हुई और खेत सूखे पड़े हैं नहरों के पानी से जो धान की रोपाई होती है वह भी अभी नहीं हो पाई उसका कारण है कि जहां पर मेन नहर है वहां के किसान बांध लेते है,जिससे आगे पानी नहीं आ पाता और वहां के लोग पहले अपने गांव का देखते हैं इसके बाद उनके गांव तरफ पानी आता है|
इस लिए उनके गांव में धान की रोपाई लेट हो पाती है अगर बारिश समय से मिल जाए जिस तरह से धान की फसल के लिए चाहिए तो लोग समय से ध्यान लगा सके और उसकी पैदावार अच्छी हो सके| लेकिन किसान क्या करें उसको तो दोनों तरफ की मार झेलनी पड़ती है दैवीय आपदा हो या सूखा यही कारण है कि किसान खेती किसानी के जरिए बहुत ही कम आगे बढ़ पाता है और कर्ज के बोझ तले दबता चला जा रहा है|
क्योंकि  दैवीय आपदाओं के चलते पहले तो किसान को फसल तैयार करके घर लाने में ही रात दिन बहुत ही मशक्कत का सामना करना पड़ता है और अगर किसी तरह फसल तैयार होकर घर आ भी गई, तो उसको बेचने के लिए चक्कर लगाने पड़ते और अगर बिक गया तो पैसे के लिए चक्कर कटने पड़ते है या फिर प्राइवेट में औने पौने दामों में बेचते है| जिससे कई बार तो ऐसा होता है की जितनी लागत है वह भी नहीं निकल पाती| जैसे इसी साल धान रोपाई का समय जोरों पर है,लेकिन पानी ही नहीं है, तो रोपाई कैसे होगी और अगर समय रहते धान की रोपाई नहीं हुई तो अच्छी पैदावार होना मुश्किल है और यही चिन्ता किसानों को सता रही है|