खबर लहरिया Blog कहीं बाढ़ से हाहाकार तो कहीं सूखा से

कहीं बाढ़ से हाहाकार तो कहीं सूखा से


बरसात, कुदरत की नियामत है। कहीं कम तो कहीं अधिक। बारिश और बाढ़ ने देश के कई हिस्सों में हाहाकार मचा रखा है. पहाड़ से लेकर मैदान तक आसमान से आफत बरस रही है। सबसे बुरा हाल असम का है समाचार पत्रों से मिल रही ख़बरों के अनुसार 84 से ज्यादा लोगों की अबतक बारिश की वजह से मौत हो गई है। इसके साथ ही देश का बड़ा हिस्सा आसमानी आफत से परेशान है। घरों से लेकर दुकानें तक जलमग्न हो गए हैं। नदियां अपनी सीमाएं तोड़ कर शहरों में घुस आई हैं। लोगों में हाहाकार मचा हुआ है।

सुरक्षित जगहों पर जाने के आदेश

तमाम शहर और गांव बाढ़ के पानी डूब गए हैं। मौसम विभाग ने पूर्वी और पश्चमी चंपारण , गोपालगंज, वैशाली, सीतामढ़ी और दरभंगा के लिए अलर्ट जारी किया है। बागमती नदी और गंडक नदी में पानी का स्तर और खतरनाक ढंग से बढ़ सकता है।जिससे निचले इलाकों में रहने वाले लोगों को ऊंचाई वाली जगहों पर जाने को कहा गया है।

बिहार में सबसे बुरा हाल

बिहार में नदियां उफान पर हैं। दर्जनों गांव पानी में पूरी तरह डूब चुके हैं। एक के बाद एक नदियों के तटबंध जवाब दे रहे हैं और नतीजा ये कि हजारों लोग बाढ़ से बेहाल हो रहे हैं। सहरसा में कोसी नदी एक बार फिर रौद्र रूप दिखा रही है जिसको बिहार का शोक भी कहा जाता है। नदी के निचले इलाकों में बसे गांवों से सैकड़ों लोगों को नावों के जरिये बाहर निकाला जा रहा है क्योंकि घर पूरी तरह बाढ़ के पानी से घिर चुके हैं। दर्जनों गांवों में इंसानों के साथ पालतू जानवर भी बाढ़ के पानी में फंसे दिखे।

ये तस्वीर बिहार के सीतामढ़ी ज़िले से है सीतामढ़ी में लगातार 48 घंटे से हो रही मूसलाधार पानी से जहा आमलोगों का जान जीवन अस्त व्यस्त हो गया है। तो वही अधवारा समूह की नदिया उफान से तबाही का मंजर दिख रहा है। सीतामढ़ी जिले में बागमती और अधवारा समूह की नदियों के जलस्तर में भी वृद्धि होने से शहर के बाहरी क्षेत्रो समेत जिले के सैकड़ो गाँवो में बाढ़ का पानी प्रवेश कर चुका है। जिससे लाखों की आबादी प्रभावित हुई है।

एक नजर बुंदेलखंड के सूखे पर भी

बुंदेलखंड और पानी की समस्या एक दूसरे के पूरक है, बुंदेलखंड की चर्चा भी सूखा और पानी संकट को लेकर हमेशा होती है लेकिन सुधरा कुछ नहीं बुंदेलखंड में पानी की समस्या किसानों के लिए जैसे किसी घाव जैसा है जो लगातार गहरा होता रहा है। चाहे पीने के पानी की बात हो या फिर खेतों की सिचाई की। खेतों में धान लगाने का टाइम है और इस टाइम पर खेत सूखे पड़ें हैं ऐसे में किसान चिंतित है जिनके पास खुद का बोर नहीं है वे अपने खेतों की सिचाई कैसे करें? किसानों को चिंता है कि समय पर धान की रोपाई नहीं हुई तो कैसे घर का खर्च चलेगा और कर्ज कैसे चुकता होगा।
मेहनत से तैयार की गई धान की नर्सरी पर सूखे की छाया पड़ने लगी है। धान की नर्सरी खेतों में तैयार है, मगर पानी के अभाव में रोपाई नहीं हो पा रही है। किसान टकटकी लगाए आसमान की ओर निहार रहा है। खेत तैयार कर वह पानी का इंतजार कर रहा है। मगर दिन भर उमड़ घुमड़ रहे बादल दगा दे जा रहे हैं। बारिश का आधा सीजन बीत चुका है। मगर अभी इतनी बारिश नहीं हुई कि खेतों में धान की रोपाई हो सके। इसकी वजह से किसान परेशान है।

 कुछ किसान ट्यूबबेल से खेतों में पानी भरकर धान की रोपाई कर चुके हैं। उनके सामने भी पानी के बगैर फसल बचाने की चुनौती मुंह बाए खड़ी है। फसल में पानी के लिए किसानों को बारिश का ही एकमात्र सहारा है। क्योंकि ऐसी महंगाई में इंजन का पानी भी डीजल महंगा होने की वजह से बहुत ही महंगा पड़ रहा है। इसलिए किसानों की सारी उम्मीदें ईश्वर के सहारे हैं।कोरोना की वजह से लॉक डाऊन के चलते 4 महीना से किसान वैसे भी मंदी की मार झेल रहे हैं। बारिश न होने से आर्थिक संकट आ गया है। यदि बारिश नहीं हुई तो किसान भुखमरी की कगार पर पहुंच जाएगा।

पानी पर होती राजनीति

उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड जहां लोग बूंद-बूंद पानी को तरसते हैं, यहां का जल स्तर लगातार गिर रहा है।सरकारें सिर्फ बजट जारी करके असल समस्या से मुंह फेर चकी हैं पर समस्या आज भी जस की तस है। हमारे देश में वंचित समुदाय और गरीब वर्गों तक जीवन की बुनियादी जरूरतों की पहुंच नहीं है, उनमें से एक पानी भी है । झुग्गी-झोपड़ियों में गरीब तबकों के लिए पानी जैसी बुनियादी जरूरतों को जुटाना भी बहुत मुश्किल होता है । शासन-प्रशासन और समाज का संपन्न तबका इन वर्गों की लगातार अनदेखी करता है। इस वजह से वंचित समुदायों और गरीबों के यहां न तो नलकूप की व्यवस्था मिलती है, न ही उन तक ठीक ढंग से पानी की सप्लाई होती है । हमारी चमक-धमक वाली उपभोक्तावादी जीवनशैली के कारण हमारी सामाजिक जिम्मेदारी भी खत्म हो गयी है । 
कभी राह चलते लोगों के लिए प्याऊ और छायादार ठिकाने की व्यवस्था होती थी । लेकिन बाजारवादी प्रवृत्ति की वजह से सब खत्म हो गये हैं । जब से पानी भी बेचने की वस्तु बनी है, उसका संकट और अधिक बढ़ गया है, क्योंकि एक तबका उससे मुनाफा कमाता है । 
मुनाफे की यह प्रवृत्ति नीति-निर्माण में दखल देती है और यहीं से उसका राजनीतीकरण शुरू हो जाता है । बांदा का नाम लिम्का बुक रिकॉर्ड में शामिल किया गया जल संचयन के नाम पर, लेकिन असलियत कुछ और है कि पानी के नाम पर बुंदेलखंड में राजनीति होती है और होती रहेगी इसमें सबसे बड़ा रोल रहा है, राजनीतिक पार्टियों का , सरकार का और अफसरों का। जल संरक्षण पर अब भी गंभीरता से काम नहीं हुआ तो भविष्य में सूखता कंठ हमारी जान ले लेगा।