खबर लहरिया Blog किसानों की बढ़ती समस्या

किसानों की बढ़ती समस्या

बुंदेलखंड मध्य भारत का एक प्राचीन हिस्सा है। यह मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के भागों में फैला हुआ है। यह अपने इतिहास के लिए जाना जाता है। यह वनों और खनिजों जैसे संसाधनों से भरा हुआ है।

बुंदेलखंड कई सालों से पानी की कमी झेल रहा है । इससे विकास में भी कमी आयी है। कृषि लोगों का एकमात्र काम है। पानी की कमी की वजह से वह भी मुश्किल में है। सरकारी सुविधाएं भी गरीब लोगों तक सही से नहीं पहुंच रहीं। पंचायत व गांव के अधिकारी भी लोगो
की मदद कर पाने में असफल हैं।
इसकी वजह से लोग गांव छोड़कर जा रहे हैं। कुछ अन्य कामों को अपना रहे हैं। जैसे -पेड़ों को काटना। पेड़ कटने की वजह से बारिश न होने की संख्या और बड़ गयी है। ज़मीन तपती धूप में और सूखी हो गयी है। सीमांत समुदाय के लोग भूख से मर रहे हैं।लोगों के लिए खतरा और
भी बढ़ता जा रहा है।

पहले तलाबों, नदियों, झीलों, टैंको, बावड़ियों, कुंओ आदि की वजह से पानी की कमी नहींहोती थी। बारिश के दौरान पानी नदियों , तलाबों में भर जाता जो लोग खेती के लिए काम में लाते। इससे ज़मीन भी उपजाऊ रहती थी। हर गांव में अलग-२ कामों के लिए अलग-२ नामों से तलाबों को बनाया जाता था। जैसे- पशुओं के पानी-पीने के लिए ' गऊ-घाट ', किचन गार्डन के लिए तलाब व बारिश के पानी को इकट्ठा करने के लिए गड्ढे खोदे जाते थे। धीरे-२ लोगों व सरकार ने इस पर ध्यान देना छोड़ दिया। जिससे पानी की समस्या और भी बढ़ गयी।
Growing problem of farmers
चूंकि बुंदेलखंड में लगातार सूखा पड़ रहा है, रबी के मौसम में या तो पानी या उधार न मिलने के कारण किसानों को भूमि खाली छोड़नी पड़ती। भूमि खाली छोड़ने की वजह से भूमि की उपज खराब होने का भी खतरा होता है। जो लोग अन्य के खेतों में काम करते उन्हें भी सूखे के कारण खाली बैठना पड़ता। पानी के सीमित साधन होने की वजह से लोगों के पास बारिश का इंतेज़ार करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं होता।
खेती के बदलते तरीके भी किसानों की समस्या का कारण बन गए हैं। छोटे- किसानों के पास संसाधन कम होते हैं। वह बीज, कीटनाशक, खाद आदि चीज़ों के लिए बाहरी संसाधनों की तरफ़ देखते हैं। बढ़ती कीमतो की वजह से खेती का सामान खरीद पाना किसानों के लिए आसान नहीं होता। पंप, अच्छे किस्म के बीज जिसमें पानी कम लगता है कि कीमत बहुत ज़्यादा होती है जिसे गरीब किसान नहीं खरीद पाता।
खेती के लिए गरीब किसान बैंको से उधार लेता है। बारिश न होने पर फसले नहीं हो पाती जिससे वह और भी ज़्यादा उधारी से घिर जाता है।
खेती के लिए , लिए गए सारे बीज व खाद बर्बाद हो जाते हैं। अनाज खरीदने के लिए उसे फिर से उधार लेना पड़ता है। उधार चुकाने के लिए वह अपनी जनीं भी बेच देता है। चूंकि अब ज़मीन नहीं है तो वह खेती भी नहीं कर सकता। वह जीविका के लिए अन्य साधनों की तरफ़
देखता है।
अभी भी बुंदेलखंड में लोगो तक ज़रूरी सुविधाएं नहीं पहुंची हैं। सरकार की तऱफ से कोई छूट न मिलने पर किसान पर उधार और बढ़ता जाता है। जिससे की किसान आत्महत्या कर लेता है। हर साल बुंदेलखंड के कई गांवो में बहुत से किसान भूख और उधारी के चलते आत्महत्या
कर लेते हैं। आत्महत्या की संख्या और भी बढ़ती जा रही है।
लोगों के पास सरकारी सुविधाओं की कमी हैं। निम्न जाति व गरीब लोग तो सभी- सुविधाओं से और भी दूर है। हाल ही में 12 मार्च, 2020 को अचानक से बर्फ़बारी पड़ने की वजह से सारी फसलें बर्बाद हो गईं। आसमान जैसे ही साफ़ हुआ लोग अपने खेतों की तऱफ दौड़े। सारी फसल बर्बाद हो चुकी थी। चेहरों पर सिर्फ दुख और परेशानी थी। इतने महीनों की मेहनत के बाद भी अब कुछ नहीं बचा था।
हर साल कभी सूखा तो कभी बर्फ़बारी तो कभी सुविधाओं की कमी कारण लोग या तो आत्महत्या कर रहें हैं या तो गांव छोड़कर शहर की तरफ़ जा रहे हैं। इससे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तो गिर ही रही है साथ ही विकास भी रुक गया है।
यहां सरकार द्वारा लोगों को राहत सुविधाएं पहुँचाने की ज़रूरत है। पिछड़े गांवो में समस्या अभी भी सुधरी नहीं है। खेती के लिए बांध व नए संसाधन की सही कीमत देने की ज़रूरत है। पानी की कमी और बढ़ती आत्महत्या अभी भी एक बहुत बड़ी समस्या है।
अभी जब देश विकास की ओर बाद रहा है फिर भी किसानों की समस्या वहीं की वहीं है। कृषि प्रधान देश होने के बाद भी किसानों की हालत खराब है।