जिला बांदा,ब्लाक नरैनी,ग्राम पंचायत बिल्हरका मजरा भावरपुर| यहाँ के लोगों का आरोप है कि लॉकडाउन में काम बंद होने से बाहर शहरों से आये मजदूरों ने गांव में बुजुर्गों के साथ बैठक कर शलाह बनाई कि क्यों न फुर्सत में अपने गांव की घरार नदी को साफ कर लिया जाए जिससे उनके गांव का हित होगा| जो बाढ़ में जलभराव से गांव बह जाता है उससे भी बचगा और सिंचाई की सुविधा भी होगी| इन सब बातों का विचार करते हुए हम लोगों ने श्रमदान के तहत काम करने को ठान लिया और समाजसेवी राजा भैया का भी सहयोग मिल गया इसके बाद उन्होंने 10 जून से 18 जून तक 1 हफ्ते 52 लोगों ने नदी की खुदाई की यह खबर जब मीडिया में चली और मुख्यमंत्री तक सूचना पहुंची तो उन्होंने उन मजदूरों को सम्मानित करने की बात कही यह सुनते ही अधिकारी प्रधान के साथ मिलकर वहां आए और रातों-रात मनरेगा का बोर्ड लगवा दिया और कह दिया कि यहां पर कोई श्रमदान नहीं हुआ है|
जब अधिकारियों द्वारा उनकी यह बात ना मानी गई तो वह 29 जून को इस बात को लेकर और उनके काम को माना जाए की आवाज उठाने के लिए मुख्यमंत्री के यहां जाने के लिए तैयार हो गए इसकी सूचना प्रशासन को मिलते ही प्रशासन ने उनके गांव को चारों तरफ से घेर लिया और यहां तक कि समाजसेवी राजा भैया के ऑफिस को भी घेर लिया जिससे पूरा गांव छावनी बना हुआ था और वह लोग अपनी बात रखने के लिए मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंच पाए|
फिलहाल बहुत चर्चा और बातचीत ओं के बाद अतर्रा एसडीएम द्वारा इस बात को समझते हुए टीम गठित कर निष्पक्ष जांच का आश्वासन दिया गया और कहा गया कि इसके साथ ही मजदूरों को जिन जिन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है वह भी उनको दिया जाएगा और 6 जुलाई को जांच कर उनके काम को मानने और ना देने का काम किया जाएगा अगर 6 जुलाई को यह नहीं होता तो गांव के लोग जिन्होंने श्रमदान में काम किया है वह 7 जुलाई को मुख्यमंत्री के यहां प्रस्थान करेंगे|
लोगों का कहना है कि उनके गांव में नदी की सफाई ना होने से बहुत सारी दिखते होती थी दो बार तो उनका गांव पूरी तरह बह चुका है बाढ़ के कारण इसलिए उन मजदूरों ने सोचा कि इस नदी की सफाई कर दे तो बाढ़ भी नहीं आयेगी और मुश्किल का समना भी नहीं करना पडे़गा| साथ ही परदेश में लॉक डाउन के चलते जिस तरह की स्थिति झेली है उन्होंने तो अब परदेश न जाकर यहीं खेती करेंगे तो सिंचाई का भी सहरा होगा| लेकिन प्रसाशन इस बात को नही समझ रही है|
बांदा: नदी साफ़ कर ग्रामीणों ने खोजा रोजगार का साधन, क्या प्रधान ने लगाई सेंध?
पिछला लेख