खबर लहरिया Blog वाराणसी के प्रसिद्ध मणिकार्णिका और राजा हरिश्चंद्र घाट पर लॉकडाउन का प्रभाव

वाराणसी के प्रसिद्ध मणिकार्णिका और राजा हरिश्चंद्र घाट पर लॉकडाउन का प्रभाव

वाराणसी के प्रसिद्ध मणिकार्णिका और राजा हरिश्चंद्र घाट पर लॉकडाउन का प्रभाव :उत्तर प्रदेश के बनारस में 2 घाट मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए बहुत ही प्रसिद्ध माने जाते हैं| पहला है मणिकार्णिका घाट और दूसरा है राजा हरिश्चंद्र घाट यहां पर दाह संस्कार कराने वालों को डोम राजा कहकर पुकारा जाता है| डोम जाति कोई अछूत जाति नहीं है| हिंदू रीति रिवाज के अनुसार मृतकों के अंतिम संस्कार के समय इनकी भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है| डोम जाति का इतिहास यहां गौरवपूर्ण रहा है| कहा जाता है कि वैदिक काल में इनका संबंध एक बड़े राज्य वंश से था|

राजा हरिश्चंद्र घाट

राजा हरिश्चंद्र घाट


यहां के डोमराजा नाम से पुकारे जाने वाले दिनेश कुमार बताते हैं कि हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों की चाहत होती है कि उनकी मृत्यु काशी में हो और उनकी चिता गंगा नदी के किनारे मणिकर्णिका घाट या फिर राजा हरिश्चंद्र घाट पर जले, यही कारण है कि यहां चौबीसों घंटे चिताएं जलती रहती हैं| दुनिया में शायद ही कोई ऐसी जगह हो जहां यहां से ज्यादा अंतिम संस्कार होते होंगें| लेकिन पिछले करीब 2 महीने से घाटों पर कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन के कारण घाटों में सन्नटा पसरा हुआ है| जहां हर रोज लगभग 200 चिताएं जला करती थी| अब वहां दिन भर में 10 चिताएं जलना भी मुश्किल हो गया हैं| जिससे उनके रोजगार पर भारी प्रभाव पड़ा है|
लालमुनी चौधरी का कहना है कि यहां हर समय इन घाटों पर 50 से 70 लोग काम करते हैं और हम डोमराजा संस्कार की वजह से ही कई लोगों को यहां रोजगार मिला हुआ है तो कई लोग उससे जुड़ी वस्तुओं के व्यापार से अपना जीवन यापन कर रहे हैं| लेकिन इस लॉकडाउन के कारण उनका रोजगार पुरी तरह ठप हो गया है| जिससे उनकी बहुत ही दयनीय स्थिति है, जो उनके पास है उसी से किसी तरह अपना और अपने परिवार का गुजरा चला रहे हैं, क्योंकि कोई कर्ज भी इस समय की स्थिति को देखते हुए देने के लिए तैयार नहीं है ना ही सरकार से उनको किसी तरह की मदद मिली है| इस लिए अगर एक टाइम सब्जी के साथ खाते हैं, तो दूसरी टाइम नमक रोटी से गुजारा कर अपना परिवार पालते हैं|
डोमराज परिवार के पंकज चौधरी कहते हैं कि यहां बनारस के अलावा अन्य जिलों से भी लोग अंतिम दाह संस्कार के लिए लोग शव लेकर आते थे| जैसे बिहार,झारखंड, बलिया और जैनपुर जैसी दूर दूर जगहों से लोग आते थे,लेकिन इस समय लॉकडाउन के चलते हर जिले की सीमाएं सील हैं और लोगों का आना जाना बंद है| इसलिए भी लोग शव लेकर यहां नहीं आते हैं| यहां तक कि बनारस के लोग भी इस समय अंतिम संस्कार के लिए घाटों पर नहीं आते अपने घरों के आस-पास ही अंतिम संस्कार कर लेते हैं| जिसके चलते इन घाटों में काम करने वाले और अंतिम दाह संस्कार से जुड़ी वस्तुओं को बेचने वाले लगभग 300 परिवार भुखमरी की कगार पर है| साथ ही पंकज यह भी बताते हैं कि बात सिर्फ यहां अंतिम संस्कार के लिए शव आने की भर नहीं है बल्कि दूसरी समस्या यह भी है कि जो यहां अंतिम संस्कार के लिए आ रहे हैं उनके लिए संसाधन की व्यवस्था भी नहीं है जैसे कि उनके अंतिम संस्कार के लिए कफन और लकड़ियों की जरूरत होती है, लेकिन यहां तक कि वह भी नहीं मिल रही हैं|
मणिकार्णिका घाट

मणिकार्णिका घाट


डोमराज परिवार के पवन चौधरी बताते हैं कि यहां लकड़ियों के अलावा बिजली से भी अंतिम दाह संस्कार होता है| लेकिन यहां एक कोरोना पॉजिटिव की मौत का अंतिम संस्कार राजा हरिश्चंद्र घाट पर कराया गया था| जिसके लिए पूरा घाट पहले से ही खाली करवा लिया गया था सिर्फ स्वास्थ्य विभाग की टीम थी| तब से कुछ लोगों में और भी डर बैठ गया है कि कहीं उसका प्रभाव अभी भी मौजूद ना हो| इस लिए और भी सन्नाटा छाया हुआ है| जिसके बारे म कभी उन्होंने उम्मीद भी नहीं की थी कि जहां लगभग रोज का 200 चिताएं जलती है वहां इस तरह के दिन भी आएंगे ना ही कभी उन्होंने सोचा था| लेकिन इस तरह की स्थिति को देखकर वह काफी परेशान हैं और रोजगार ना मिलने से भुखमरी की कगार पर है|
गान प्रकाश सोनकर का कहना है कि यहां के इन घाटों की लौ कभी भी नहीं बुझी चाहे कितनी भी बाढ़ आंधी पानी और मुसीबतें आई हो, लेकिन दाह संस्कार बराबर होते ही रहे हैं और यहाँ जलने वाली चिताओं की लौ को नहीं बुझा पाई| लेकिन इस कोरोना वायरस के भय ने यहां जलने वाली लौ की आग को ठंडा कर दिया है| जिससे डोम राजाओं पर बेरोजगारी के चलते भुखमरी का संकट छाया हुआ है और उनके साथ ही अंतिम दाह संस्कार से जुड़ी सामग्री बेचने वालों पर भी भुखमरी का संकट छाया हुआ है| वह चाहते हैं कि सरकार उनके बारे में भी सोंचे और यहां के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया चलने दे साथ ही अंतिम संस्कार से जुड़ी सामग्री भी मिले ताकि उनका रोजगार चल सके और वह अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें और भुखमरी के संकट से दूर हो सकें|
 
-चीफ रिपोर्टर, गीता देवी