खबर लहरिया Blog लॉकडाउन से छोटे लघु कुटीर उद्योगों में वाराणसी की बनारसी साड़ी के कारोबार का हाल

लॉकडाउन से छोटे लघु कुटीर उद्योगों में वाराणसी की बनारसी साड़ी के कारोबार का हाल

लॉकडाउन से छोटे लघु कुटीर उद्योगों में वाराणसी की बनारसी साड़ी के कारोबार का हाल :सरकार ने कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए पुरे देश में लॉकडाउन कर दिया है| इस लॉकडाउन के चलते देश में बडी़-बडी़ फैक्ट्री और मिल भी रुक गई हैं| ऐसे में छोटे लघु कुटीर उद्योगों का क्या हाल होगा इसका अंदाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के बनारसी साड़ी बनाने वाले हस्तकला उद्योग में शामिल बुनकरों की स्थिति से लगाया जा सकता है| जिनकी संख्या सहायक हथकरघा विकास अधिकारी नितेश दिवन के मुताबिक एक लाख है|

Banarasi-sari

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लगभाग तीन महीने से लॉक डाउन के कारण बंद हुए काम ने बनारसी साड़ी उद्योगों के  बुनकर कारीगरों की हालत और भी खस्ता कर दी है| जिससे वह भुखमरी के कगार पर हैं| लॉकडाउन के कारण गरीब दिहाडी मजदूर और रोज कमाने खाने वालों के सामने आर्थिक तंगी का संकट आ खडा़ हो गया है। वे किसी तरह से अपना जीवन जीने को मजबूर हैं| बनारसी साड़ी से जुड़े कारीगर की स्थिति तो बद से बदतर हो गई है| एक तरफ पेट पालन की चिंता है,तो दूसरी तरफ कर्ज चुकाने की चिंता खायें जा रही है| ऐसा ही बनारसी साड़ी कारोबार से जुडी रेहाबीबी, मेहरुनिशा, नूरजहाँ और जमीर अंसारी का कहना है| वह बताते है कि जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है, तब से अब तक काम न मिलने से खाने पीने की समस्या सामने आ खडी़ हो गई है| कहीं से एक पैसे की कोई मदद नहीं मिली। किसी तरह से गुजर बसर हो रहा है|
मुश्ताक अहमद का कहना है कि बनारस में बुनकर परिवार का काम ही साडी़ बुनाई करके अपने परिवार का भरण पोषण करना हैं| लेकिन लॉकडाउन के चलते काम ना मिलने से दो वक्त की रोटी का जुगाड करने के लिए भी मजबूर हो गये| जिससे गद्यीदार का कर्ज भी हो गया है, अब चिंता है कि कर्ज कैसे चुकायें गें। शबाना बानो और शहीदा सहित बीसों महिलाओं का कहना कि बनारसी साड़ी में टिक्की स्टोन लगाने का काम करती थी और उसी से अपने बच्चों का भरण-पोषण पढा़ई लिखाई का खर्च उठाती थी| लेकिन लॉकडाउन के चलते काम बंद हो गया और जो काम किया था उसकी मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है| इस कारण वह रमजान का महिना भी ठीक से नहीं मना पाये| जबकि ये खाने पीने के त्यौहार थे और हर साल यह त्यौहार बड़ी खुशी और उल्लास के साथ मनाते थे क्योंकि उनके पास रोज का कमाना-खाना जरुर था| लेकिन काम तो बराबर चलता था और पैसा पास में बना रहता था| इस साल त्यौहार में हर चीज के लिए वह तरस गए हैं क्योंकि जब उनको दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए ही दिक्कत आ रही थी कभी सब्जी होती थी तो नमक नहीं होता था आटा होता था तो चावल नहीं होता था तो वह रमजान के त्योहारों के पकवान और नई नई डीशों की पूर्ति कैसे कर पाते| इस कारण त्यौहार भी फिका पड़ गया है|
बनारसी साडी़ व्यापारी राहुल के मुताविक जब से लॉकडाउन हुआ तभी से बनारस का साड़ी उद्योग पूरी तरह से ठप हो गया है| इसके पहले जनवरी-फरवरी के महीने में ही चीन से रेशम आने में रोक लग गई थी| तभी से यहां के बुनकर और व्यापारियों के हालत खराब होना शुरू हो गए थे| लेकिन जो भी उनके पास स्टॉक रखा हुआ था उस पर व्यापारी और बुनकरों दोनों का काम चल रहा था और उनके खाने-पीने का संकट इतना नहीं बढा़ था| बनारस के लगभग लाखों बुनकर पावरलूम या हैंडलुम से जुडे़ हुए हैं मौजुदा हालात को देखते हुए| लेकिन ऐसा ही रहा तो भुखमरी का शिकर होगें|