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जो शौक बचपन में नहीं हो पाए पूरे, अब उनको पूरा कर रही हैं महिलाएं

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कहते हैं कि खेलने-कूदने, पढ़ाई करने की कोई उम्र नहीं होती, लेकिन ये कहावतें हमें सिर्फ किताबों में ही पढ़ने को मिलती हैं। हमारा समाज अभी भी महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकने के लिए उनसे उम्मीद करता है कि वो ज़िन्दगी भर चूल्हा-चौका करें और घर संभालें। बड़े होकर तो क्या, बचपन में भी उनके खेलने-कूदने पर पाबंदी लगा दी जाती है और उन्हें घर के अंदर रहने को बोला जाता है। समाज की ऐसी ही कुछ कुरीतियों को तोड़ने के लिए ललितपुर ज़िले के महरौनी ब्लॉक के सहजनी शिक्षा केन्द्र ने एक पहल की है। इस शिक्षा केंद्र में महिलाओं और लड़कियों के लिए खेल-कूद की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं, जिसमें आसपास के गाँव की महिलाएं बढ़-चढ़ कर हिस्सा भी लेती हैं। इन गतिविधियों के माध्यम से न ही सिर्फ महिलाओं को अपने घर की चार-दीवारी से बाहर निकलने का मौका मिला है, बल्कि उन्हें यहाँ बहुत कुछ सीखने को भी मिल रहा है।

कबड्डी खेलने पर बचपन में ही लग गई थी रोक-

विमला नाम की एक महिला का कहना है कि वो बचपन में कबड्डी खेला करती थीं, लेकिन जैसे-जैसे वो बड़ी होती गयीं, उनके माँ-बाप ने उनके खेलने-कूदने पर रोक लगा दी। विमला के घरवालों का मानना था कि लड़कियों को घर के काम करना आना चाहिए, खेलना-कूदना लड़कियों का काम नहीं होता। विमला ने बताया कि जो लड़कियां खेलने-कूदने के लिए बाहर निकलती भी थीं, उन्हें आसपास के लोगों के ताने सुनने पड़ते थे। शादी के कुछ साल बाद, विमला जब सहजनी शिक्षा केन्द्र से जुड़ीं, तो यहाँ उन्हें अपने बचपन के शौक को पूरा करना का मौका मिला।

शुरुआत में उनके ससुराल वालों ने भी उनके इस केंद्र में जाकर कबड्डी खेलने पर पाबंदी लगाई, लेकिन फिर विमला ने उन्हें समझया कि इस केंद्र में सिर्फ महिलाएं ही आती हैं, जिनके साथ खेल-कूद की प्रतियोगिताएं आयोजित करी जाती हैं। और अब विमला अपने कबड्डी खेलने के शौक को जी भर कर और बहुत ही उत्साह के साथ पूरा कर रही हैं। विमला का कहना है कि केंद्र में करीब 20 महिलाओं और लड़कियों की एक कमेटी बनी है जो कबड्डी और अन्य खेलों का नियंत्रण करती है। यहाँ मौजूद महिलाओं का मानना है कि इन गतिविधियों की मदद से उनका उत्साह बढ़ता है, साथ ही उनका मनोरंजन भी होता है। 

सैदपुर गाँव से आई सोमती का कहना है कि आसपास के गाँव की ज़्यादातर महिलाएं दिनभर घर के कामों में व्यस्त रहती थीं और उन्हें कभी मौका नहीं मिल पाता था कबड्डी खेलने का। जब उन्हें सहजनी शिक्षा केंद्र के बारे में पता चला तब उन्होंने अपने गाँव की महिलाओं और लड़कियों को इकट्ठा कर यहाँ आने का फैसला किया। जब से इन लोगों ने कबड्डी खेलना शुरू किया है, तब से इनका उत्साह भी बढ़ा है और इनका काफी मनोरंजन भी हो जाता है। सोमती ने बताया कि यहाँ 20 साल से लेकर 50 साल की महिलाएं आती हैं, जिनका जोश देखने लायक होता है। इन महिलाओं का उत्साह देखकर, बाकी लोगों को भी बहुत प्रेरणा मिलती है।

महिलाओं को प्रेरित करके मिलती है ख़ुशी

बमौरी गाँव की देकवर ने हमें बताया कि जब से वो सहजनी शिक्षा केंद्र से जुड़ी हैं, तब से मानो उनका जीवन जीने का नजरिया ही बदल गया है। देकवर फील्ड पर जाती हैं और महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में बताती हैं, जिससे महिलाएं प्रेरणा लेकर आगे आती हैं। देकवर का मानना है कि अगर महिलाओं को मौका मिला है कि वो अपने शौक पूरा कर सकें, तो उन्हें ऐसे मौके गवाने नहीं चाहिए और केंद्र आकर अपने सपनों को पूरा करना चाहिए। 
खटोला गांव से आई ग्यासी भी गाँव- गाँव जाकर इस केंद्र से जुड़ने के लिए महिलाओं को प्रोत्साहित करती हैं। क्योंकि महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वो घर का ही काम करें, ऐसे में अगर वो बाहर निकल कर कबड्डी जैसे खेल खेलेंगी, तो पुरुषों को भी पता चलेगा कि महिलाएं कितना कुछ कर सकती हैं। और शायद उसके बाद वो महिलाओं को वो इज़्ज़त दें जिसके वो योग्य हैं। ग्यासी ने बताया कि कई बार जब घर के बड़े उन्हें यहाँ कबड्डी खेलते देखते हैं तो कई प्रकार के सवाल उठाते हैं, लेकिन सहजनी शिक्षा केंद्र से जुड़ी सभी महिलाओं ने यह ठान लिया है कि वो समाज की किसी भी बात पर ध्यान ने देकर सिर्फ अपने सुख के बारे में सोचेंगी, और इतने सालों से वो जिन सपनों को अपने मन में दबाती हुई आई हैं, उन्हें पूरा करेंगी।

इन महिलाओं के चेहरे पर मौजूद ख़ुशी देखकर यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि कबड्डी खेल कर ये कितना आनंद उठाती हैं। शायद यह ख़ुशी इसलिए भी ज़्यादा झलकती है क्यूंकि बचपन से लेकर आजतक इन्हें कभी दिल खोल कर खेलनेकूदने का मौका नहीं मिला और हमेशा ही उन्हें घर के अंदर पित्तृसत्ता की बेड़ियों में बंध कर रहना पड़ा। लेकिन अब जब इन्हें अपनी बचपन के शौक को पूरा करने का मौका मिल रहा है, तो ये महिलाएं उसका भरपूर आनंद उठा रही हैं।

इस खबर को खबर लहरिया के लिए राजकुमारी द्वारा रिपोर्ट एवं फ़ाएज़ा हाशमी द्वारा लिखा गया है।

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