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सड़को पर गौवंश,लेकिन गौशालाओं में सन्नाट - KL Sandbox
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सड़को पर गौवंश,लेकिन गौशालाओं में सन्नाट

बांदा|  एक तरफ सरकार गौवंश की सुरक्षा के लिए लाखों रुपए खर्च करती है और जगह-जगह गौशालाए बनवाती हैं,उनको सुरक्षा की बात करती है. दूसरी तरफ लाखों जानवर गांव की छोटी छोटी गलियों से लेकर बड़े-बड़े हाईवे तक घूमते नजर आते हैं| जिससे किसानों कि फसल के नुक्सान के साथ-साथ आये दिन वह बे जुबान जानवर सड़क हादसे का शिकार भी होते हैं.इसका एक बड़ा कारण है विभाग द्धरा ग्राम पंचायतों में संचालित गौशालाओं के निर्माण से लेकर भुसा चारा और चरवाहों के मजदूरी का भुगतान ना करना. जिससे गौशाला संचालन की जिम्मेदारी निभाने वाले ग्राम प्रधान पूरी तरह अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रहे हैं|

आइए सुनते है अवारा जानवरों को लेकर किसानों की दास्तान

नरैनी ब्लाक के पडमई गांव में रहने वाले  ऋषि कुमार तिवारी और राजेंद्र कुमार का कहना है कि उनके गांव में पिछले साल गौशाला बनाया गया था. लेकिन जानवरों को गौशाला में नहीं रखा जा रहा है.बहुत से जानवर उनके यहां सड़को और खेतों पर अवारा घूम रहे हैं.जिससे उनकी मुसीबतें दिन पे दिन बढ़ती जा रही हैं दिन का चैन और रात की नींद हराम  है| फसल की रखवाली के लिए उनको खेतों में पूरी रात बितानी पड़ती हैं. जिससे उन्हें कई तरह के खतरों का डर भी होता हैं. क्योंकि इस समय धान की फसल सबसे ज्यादा लगी हुई है|
फसलों की सुरक्षा के लिए बिलेट वाला तार खेतों में लगाया गया है उसके बावजूद भी जानवर फसल चट कर जाते हैं इसलिए वह खेतों की रखवाली करते समय रात में पानी से भरे धान के खेत जब घुसते हैं,तो कीड़ों मकोड़ों का डर बना रहता है,लेकिन क्या करें फसल बचाना है, तो  मजबूरी है की रखवाली करनी पड़ेगी चाहे जिस तरह का खतरा हो.इसलिए वह चाहते हैं कि जब गांव में गौशाला बना है, तो जानवरों को बंद किया जाए.लेकिन ना तो वहां जानवरों के खाने पीने की कोई व्यवस्था है ना ही उनको बंद किया जा रहा है अगर इस बात को वह प्रधान से कहते हैं, तो वह कहता हैं कि उनके पास बजट नहीं आया तो वह कहां से जानवरों के खाने पीने कि व्यवस्था करें इस लिए जानवरों को बंद नहीं करेंगे|

खेती ही है हम किसानों के भरण पोषण का सहारा

बडोखर बुजुर्ग के किसान जगरुप  बताते है कि एक तो बुन्देखण्ड का किसान वैसे भी  देवी आपदाओं के चलते गरीबी तंगहाली के कारण कर्ज के बोझ तले दवा भुखमरी की कगार से जुझ रहा है. जो बची हुई कसर है वह अवारा जानवरों के फसल चट करने से पूरी हो जाती हैं. इस समय खरीफ की फसल में धान ज्वार अरहर और तिल जैसी फसलें खेतों में अच्छी लहलहा रही हैं |
इसी खेती के सहारे हम लोगों के परिवार का भरण पोषण और अन्य खर्चे होते हैं,लेकिन  इतना ज्यादा अवारा जानवर है कि हम लोग परेशान हैं रात-रात भर अपने खेतों की रखवाली करते हैं. तब जाकर घर में किसी तरह पेट भरने के लिए गल्ला ला पाते है थोड़ी सी भी चूक हमारे लिए बड़ी मुसीबत बन जाती है | पर क्या करें मजबूर हैं. सरकार भले ही अवारा जानवरों के नाम पर बजट भेजती हो और गौशाला बनवाती है पर किसानों की समस्या उसी तरह बनी हुई है, तो उनके लिए तो ये एक कोरा कागज लग है|

सडको में गौवंश आये दिन होते मौत का शिकर

अतर्रा किसान महेन्द्र कुमार  कहते हैं कि दिन भर जानवर खेतों में फसल चट करते हैं और शाम होते ही सड़कों में जाम लगा देते हैं.जिससे आये दिन घटनाएं होती हैं और बेजुबान जानवर कहीं घायल होते हैं, तो कहीं मौत का शिकार होते है| अभी हाल ही में 5 सितंबर को तिन्दवारी और बदौसा में 10 गौवंश ट्रक के नीचे आ कर मौत का शिकार हुए हैं पर प्रशासन चेता नहीं है. जबकि मंडलायुक्त ने गौवंश को संरक्षित करने को लेकर कई बार निर्देश भी दिए.पर यह कागजों तक ही सीमित नजर आ रहा है|

आखिरकार कहाँ जाता गौवंश के नाम पर खर्च होने वाला बजट

अब सवाल यह उठता है कि जिस तरह से गौवंश को लेकर सरकार वाहवाही लूट रही है.भारी-भरकम बजट खर्च कर रही है,तो आखिरकार वह जाता कहां है| जब जिले में छोटे से लेकर बडे़  तक लगभाग 204 गौशाला है.इनमें  तीन कान्हा पशू आश्रय केन्द्र है,जिनका निर्माण दो वर्ष पूर्व करोड़ों रुपये खर्च से हुआ था. इसके बावजूद आज भी करीब 75 हजार अवारा जानवर सड़कों पर हैं,तो  क्या सिर्फ नाम के लिए बजट और गौशाला दिखाए जाते हैं.या इसके लिए सरकार और भी कुछ ठोस कदम उठाएगी जिससे किसानों को निजात मिल सके और सड़कों में हादसे के शिकार से जानवरों को बचाया जा सके|
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