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बुंदेलखंड में फिर से लहलहाएगी मोटे अनाज की फसल

Coarse cereal crop will again bloom in Bundelkhand

बुंदेलखंड में फिर से लहलहाएगी मोटे अनाज की फसल

विलुप्त होते मोटे आनाज को वापस लाने के लिए गनीवा संस्था आई आगे

एक समय था कि बुंदेलखंड मोटे अनाज के नाम से फेमस हुआ करता था यहां का किसान ज्वार बाजरा सावां काकुन और कोदा बेर्रा जैसे मोटे अनाजों की खेती किया करते थे और इन अनाजों को खा कर स्वस्थ रहा करते थे लेकिन समय के बदलते दौर में वह मोटे आनाज विलुप्त हो रहे थे| लेकिन इस कोरोना काल में चित्रकूट जिले के किसानो ने खेती की बदलाव कि दिशा की ओर कदम बढा़या है|
इस जिले के पांच गांव का चयन दीनदयाल शोध संस्थान से संबद्ध तुलसी विज्ञान केन्द्र गनीवां ने किसानों को मोटे आनाज के बीज सवां, काकुन,कोदा और रीगा का महत्व समझाकर सवां का बीज बटां है और पैदावार बढा़ने की पहल की है| जिससे इन पौष्टिक आनाज की संबद्ध बढे़ और लोग स्वास्थ्य हो उनकी की शरीरिक क्षमता बढे़|

यहाँ के किसानों का कहना है कि अब से लगभग 30 साल पहले बुन्देलखण्ड मोटे आनाज के नाम से जाना जाता था| यहाँ सवां काकुन,कोदा,ज्वार,बाजरा और बेर्रा प्रमुख फसलें होती थी| ये मोटे आनाज लोगों को सेहतमंद बनाते थे और किसान इन बीजों का खुद में भंडार रखते थे| लेकिन बढ़ती आबादी और जरूरतों को देखते हुए सरकार ने अधिक उत्पादन पर जोर दिया है|
जिससे किसानों ने डंकल और हाइब्रिड को अपना लिया तो गेहूं और चावल पैदा कर खाने लगे और मोटे आनाज विलुप्त हो गये| जिससे तरह-तरह की बीमारी भी पैदा होने लगी और लोगों की शरीरिक क्षमता कम हो गई| पर आज कल की पीढ़ी उन मोटे आनाजो कै पसंद नहीं करती न ही उतनी महेनत की होती क्योंकि मोटा आनाज जितना खाने में पौष्टिक होता है उतनी बनाने में मेहनत लगती है

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